जानें कौन हैं वास्तु देवता, जिनकी पूजा बिना अशुभ होता है भवन निर्माण

शास्त्रों में वास्तु देव को भूमि का देवता कहा गया है, इसलिए भवन निर्माण से पहले वास्तु देवता की पूजा का विधान बताया गया है. कमरों से लेकर रसोई व पढ़ाई से लेकर पूजा घर तक हर कमरे भी वास्तु की दिशा को ध्यान में रखकर बनाना ही उचित माना गया है. मान्यता है कि ऐसा नहीं करना भूमि के मालिक की सुख- शांति को भंग कर सकता है. कम ही लोग जानते हैं कि ये वास्तु देवता कौन हैं, जिनकी प्रसन्नता हर घर के लिए जरूरी है. ऐसे में आज हम आपको उसी के बारे में बताने जा रहे हैं. 

कौन हैं वास्तु देवता?
पंडित रामचंद्र जोशी के अनुसार, शास्त्रों में वास्तु देवता को भगवान शिव के पसीने की बूंद से निर्मित पुरुष बताया गया है. पौराणिक कथाओं के अनुसार जब भगवान शिव व अंधकासुर राक्षस के बीच भयानक युद्ध हुआ तो शंकरजी के शरीर से पसीने की कुछ बूंदें जमीन पर गिर पड़ीं. उन बूंदों से आकाश व पृथ्वी को भयभीत करने वाला एक प्राणी प्रकट हुआ, जो देवताओं को मारने लगा. ये देखकर इंद्र आदि देवता डरकर ब्रह्मा जी की शरण में पहुंचे.

तब ब्रह्माजी ने देवताओं को उस पुरुष से डरने की बजाय औंधे मुंह गिराकर उस पर बैठने की सलाह दी. देवताओं ने वैसा ही किया. उसे उल्टा गिराकर सारे देवता उस पर बैठ गए. जब ब्रह्मा जी वहां पहुंचे तो उस पुरुष ने ब्रह्मा जी से प्रार्थना कर अपना दोष व देवताओं के साथ  किए जाने वाले व्यवहार के बारे में पूछा.

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इस पर ब्रह्मा जी ने उन्हें भी वास्तु देवता घोषित कर दिया. आशीर्वाद दिया कि किसी भी घर, गांव, नगर, दुर्ग, मंदिर, बाग आदि के निर्माण के अवसर पर देवताओं के साथ उसकी भी पूजा की जाएगी. जो ऐसा नहीं करेगा, उस व्यक्ति के जीवन में बाधाएं आती रहेंगी. दरिद्रता के साथ वह अकाल मृत्यु को प्राप्त होगा. तभी से वास्तु देवता को भूमि व भवन के देवता के रूप में पूजा जाता है.

ईशान कोण में है वास्तु देव का मुख
पंडित जोशी के अनुसार, वास्तु पुरुष का वास हर भूमि पर माना गया है. पुराण व वास्तु शास्त्र के अनुसार उनका सिर ईशान कोण यानी उत्तर-पूर्व, हाथ उत्तर व पूर्व दिशा तथा पैर नैऋत्य कोण यानी दक्षिण- पश्चिम  दिशा में है. इन्हीं दिशाओं को ध्यान में रखते हुए वास्तु पुरुष की पूजा व वास्तु दोषों को दूर किया जाता है. भगवान शिव के पसीने से उत्पन्न होने व ब्रह्मा जी का आशीर्वाद मिलने की वजह से वास्तु पुरुष की पूजा इन दोनों देवताओं व प्रथम पूजनीय देव गणेशजी के साथ की जाती है.

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