SC में धामी सरकार का बड़ा यू-टर्न, पूर्व CM त्रिवेंद्र से जुड़ी SLP वापस लेने से पीछे हटी सरकार

देहरादून : उत्तराखंड के पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत से जुड़ी एक विशेष अनुमति याचिका यानी स्पेशल लीव पिटिशन (एसएलपी) को सुप्रीम कोर्ट से वापस लेने के मामले में उत्तराखंड बीजेपी में जबरदस्त तूफान मचा हुआ है. पूरे मसले पर आखिरकार उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार को यू-टर्न लेना पड़ा है. सरकार को अपना फैसला बदलते हुए यह निर्णय करना पड़ा है कि वह एसएलपी वापस नहीं लेगी और मामले की पैरवी सरकारी स्तर पर पहले की ही तरह होती रहेगी, जिसके लिए बकायदा सुप्रीम कोर्ट में उत्तराखंड सरकार की पैरवी करने वाली वकील को न्याय विभाग के उप सचिव की तरफ से एक पत्र भी लिखा गया है.
19 नवंबर को जारी इस पत्र में न्याय विभाग के उप सचिव अखिलेश मिश्रा ने सुप्रीम कोर्ट में उत्तराखंड सरकार की पैरवी कर रही वकील वंशजा शुक्ला को लिखा है कि सरकार ने 26 सितंबर 2022 को एक निर्णय लिया था, जिसमें उत्तराखंड सरकार बनाम उमेश कुमार शर्मा और अन्य मसले पर सुप्रीम कोर्ट में सरकार की तरफ से दायर एसएलपी को वापस लेने का निर्णय लिया गया था. इस निर्णय को अब निरस्त किया जाता है. यानी सुप्रीम कोर्ट से एसएलपी वापस न लेने का निर्णय हुआ है, इसका मतलब यह हुआ कि सरकार पहले की ही तरह मामले की पैरवी सुप्रीम कोर्ट में करती रहेगी.
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इस निर्णय को सरकार का बड़ा यू-टर्न माना जा रहा है, जिसे बीजेपी की अंदरूनी राजनीति से भी जोड़कर देखा जा रहा है. दरअसल पूरे मसले में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत कटघरे में खड़े हो रहे थे. मामला साल 2020 का है, जब तथाकथित पत्रकार उमेश कुमार और एक अन्य के खिलाफ राजद्रोह के मामले में नैनीताल हाईकोर्ट में सुनवाई हुई. उमेश कुमार ने हाईकोर्ट से अपने खिलाफ दर्ज राजद्रोह की एफआईआर निरस्त करने की अपील की थी. इस पर हाईकोर्ट में सुनवाई करते हुए एफआईआर को निरस्त करने के आदेश दिए थे. इसी मामले की सुनवाई के दौरान याचिका में पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा साल 2016 में झारखंड का बीजेपी प्रभारी रहने के दौरान एक व्यक्ति को गौ सेवा आयोग का अध्यक्ष बनाने के एवज में कुछ रुपए लेने की बात याचिका में सामने आई थी. याचिकाकर्ता उमेश कुमार ने कहा था कि इस व्यक्ति ने यह रुपये त्रिवेंद्र सिंह रावत के रिश्तेदारों के खाते में डाले हैं. इस पर हाईकोर्ट ने सीबीआई जांच की बात कही थी. सीबीआई जांच के हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ त्रिवेंद्र सिंह रावत ने निजी तौर पर सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दाखिल की थी. क्योंकि उस समय त्रिवेंद्र सिंह रावत राज्य के मुख्यमंत्री थे, इसलिए राज्य सरकार ने भी एक एसएलपी अपनी तरफ से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की थी. इस पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट के निर्णय पर रोक लगा दी थी. लेकिन सितंबर महीने में अचानक राज्य की धामी सरकार ने सरकार की तरफ से दायर एसएलपी को वापस लेने का फैसला ले लिया. जिस पर कई सवाल खड़े हो रहे थे.
राज्य में सियासी बवाल मच गया
यह पहला मसला है जब अपनी ही पार्टी की सरकार अपने ही किसी पूर्व मुख्यमंत्री के पक्ष में दायर एसएलपी को वापस लेने का फैसला कर रही हो. धामी सरकार के इस फैसले से पार्टी की जबरदस्त किरकिरी हुई है. साथ ही पार्टी के भीतर चल रही सियासत भी सबके सामने आ गई है. यानी ये साफ हो गया कि एक तरफ पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के चाहने वाले लोग हैं तो दूसरी तरफ धामी सरकार. जैसे ही सरकार के एसएलपी वापस करने की निर्णय का पता लगा तो राज्य में सियासी बवाल मच गया. बीजेपी संगठन ने सरकार के इतर अपना रुख साफ कर दिया. बीजेपी संगठन सरकार को छोड़कर एक तरह से त्रिवेंद्र सिंह रावत के साथ खड़ा हो गया. मीडिया में जैसे ही एसएलपी वापस लेने संबंधी निर्णय की खबर आई बीजेपी ने अपना स्टैंड साफ करते हुए कह दिया कि पार्टी एसएलपी वापस लेने के पक्ष में नहीं.
क्या बोले भाजपा के अध्यक्ष भट्ट
बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र भट्ट ने पार्टी की स्थिति मीडिया के सामने साफ कर दी, जिसके बाद सरकार को भी अपना निर्णय वापस लेना पड़ा. इस मसले को लेकर त्रिवेंद्र सिंह रावत और उनके करीबी संघ और बीजेपी के नेता सरकार से बेहद नाराज बताए जा रहे हैं, जिसकी शिकायत बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व से भी की गई है. त्रिवेंद्र सिंह रावत तो पिछले तीन दिनों से दिल्ली में ही जमे हुए हैं. उन्होंने बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा समेत कई बड़े नेताओं से मुलाकात की है और इस मसले पर अपनी कड़ी नाराजगी जाहिर की है.
 
				 
					




