बंद होगा सिंगल यूज प्लास्टिक का धंधा,1 जुलाई से लगेगा इन प्लास्टिको पर प्रतिबन्ध
दिल्लीःअगले महीने जब आप बाजार जाएं तो अपने इर्द-गिर्द नजर घुमाइएगा, देखियेगा कि क्या अभी भी पेय पदार्थों के साथ प्लास्टिक का पाइप दिया जा रहा है. आपकी पसंदीदा कैंडी क्या अभी भी किसी प्लास्टिक से चारों तरफ लपेट कर बेची जा रही है. क्या मिठाई के डब्बे अभी भी पारदर्शी प्लास्टिक फिल्म से पैक किए गए हैं? अगर ऐसा नहीं है तो मान कर चलिए की भारत ने सिंगल यूज प्लास्टिक के खिलाफ अपनी जंग शुरू कर दी है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने चार साल पहले सिंगल यूज प्लास्टिक के उपयोग को चरणबद्ध तरीके से खत्म करने की शपथ ली थी. उसके बाद अब 1 जुलाई को देश इस दिशा में अपना पहला कदम उठाने जा रहा है.
अगले महीने से सभी राज्यों में कम उपयोगिता और ज्यादा कूड़ा पैदा करने वाली ऐसी करीब 19 वस्तुओं के निर्माण, भंडारण, आयात, वितरण, बिक्री और उपयोग पर पूरी तरह से प्रतिबंध लग जाएगा. इन प्रतिबंधित वस्तुओं में स्ट्रॉ (पेय पदार्थ पीने वाला पाइप), स्टिरर( पेय पदार्थ घोलने वाली प्लास्टिक की छड़), इयर बड, कैंडी, गुब्बारे जिसमें प्लास्टिक की छड़ लगी होती है, प्लास्टिक के बर्तन (चम्मच, प्लेट आदि), सिगरेट के पैकेट, पैकेजिंग फिल्म और साज सज्जा में इस्तेमाल होने वाला थर्मोकोल शामिल है.
कूड़ा और रसायन से जुड़े मामलों पर काम करने वाले समूह से संबंधित दिल्ली के पर्यावरणविद् सतीश सिन्हा का कहना है कि हम रोजाना प्लास्टिक खा रहे हैं, पी रहे हैं और सांस के जरिए ले रहे हैं. यह कई सालों से हमारे पारिस्थितिकीय तंत्र, हमारे समुद्र और वन्यजीवन को खतरा पैदा कर रहा है. नए साक्ष्य बताते हैं कि अब यह हमारे खून में भी घुल गया है. प्लास्टिक महज कूड़ा नहीं है. बल्कि यह एक ऐसा जहरीला रसायन है, जिसके खिलाफ हमें समय रहते कोई कार्रवाई करना बेहद जरूरी है.
एक औसतन भारतीय हर साल करीब 10 किलो प्लास्टिक का इस्तेमाल करता है. यानी भारत एक ऐसा देश है जहां हर साल करीब 35 लाख टन घरेलू प्लास्टिक का कचरा पैदा हो रहा है. ऐसे देश जहां हर साल इतना बड़ा कूड़े का अंबार लग रहा है, वहां 19 वस्तुओं को रोकना कोई मुश्किल और चुनौती भरी बात नहीं लगती है. लेकिन तमाम औद्योगिक बोर्ड से उठ रहा विरोध और प्रतिरोध दूसरी ही कहानी बयान करते हैं.
प्लास्टिक नुकसानदायक फिर रोक पर विरोध क्यों
एक गैर लाभकारी समूह और छोटे और मंझोले स्तर के उद्योंगों का समर्थन करने वाले भारत एसएमई फोरम के अध्यक्ष विनोद कुमार का कहना है कि स्थिति काफी विकट है. इस फैसले से करीब 1 लाख छोटी इकाइयां बंद होने को मजबूर हो जाएंगी. ये इकाइयां अभी महामारी के असर से उबर ही रही हैं. ऐसे में इनके पास इकाइयों को बंद करने या अपने कर्मचारियों की छंटनी के अलावा की चारा नहीं होगा. कुमार बताते हैं कि हमारी इकाइयां अभी नई मशीन खरीदने के लिए ही संघर्ष कर रही हैं. क्योंकि मौजूदा मशीन को वर्तमान जरूरत के हिसाब से संशोधित नहीं किया जा सकता है. पुरानी मशीन जो अब कबाड़ हो चुकी हैं, उन पर कर्ज बकाया है. इनमें से ज्यादातर लोन नॉन परफॉर्मिंग एसेट (एनपीए) के रूप में हो सकता है. बड़ी कंपनियों के पास फिर भी बदलाव के लिए सुविधाएं और इन्फ्रास्ट्रक्चर हैं. हम भी बदलाव के लिए तैयार हैं. इसके लिए काम भी युद्ध स्तर पर जारी है. लेकिन हमें तैयारी के लिए कम से कम कुछ अतिरिक्त वक्त दिया जाना चाहिए.