आनंद की राह
एक व्यक्ति ऋषि के आश्रम में पहुंचा। ऋषि के मुखमण्डल पर शान्ति की आभा झलक रही थी। व्यक्ति ऋषि के चरणों में गिर कर बोला, ‘आपके व्यक्तित्व ने मुझे बहुत प्रभावित किया है। मैं बहुत ही अशान्त हूं, आपके जैसा शान्त होना चाहता हूं।
’ ऋषि ने कहा, ‘आप अशान्त हैं, मैं शान्त हूं। क्या मैंने कभी आपसे कहा कि मैं आपके जैसा होना चाहता हूं।’ वह हाथ जोड़ कर गिड़गिड़ाने लगा, ‘महाराज, मुझे कोई रास्ता सुझाएं।’ ऋषि उसे आश्रम से बाहर ले गए।
बरगद का वृक्ष दिखाते हुए कहा, ‘देख रहे हो यह कितना विशाल वृक्ष है, कितनी मज़बूत जटाएं हैं इसकी। इससे कुछ दूरी पर ही लगे उन फूलों के पौधों को देख रहे हो, कितने सुकोमल मालती के पौधे हैं। ये पौधे अपने फूलों से वातावरण को सुगन्धित कर रहे हैं।
मैंने कभी नहीं देखा कि यह पौधा बरगद के वृक्ष की तरह ऊंचा और विशाल होना चाहता है। यह पौधा अपने छोटे होने में ही बड़ा आनंदित है। देखो, कैसे हवाओं के संग झूल रहा है। जिस दिन तुम अपनी तुलना दूसरों से करना बन्द कर दोगे, अपने आप को स्वीकार कर उसी में आनन्दित रहने लगोगे, उस दिन तुम शान्ति का अनुभव कर सकोगे।