चिकित्सा क्षेत्र का पुरसाने हाल
एक साल से अधिक हो गया है, हमारे डॉक्टर, नर्स व अन्य स्वास्थ्य कर्मी लगातार काेरोना महामारी से जूझ रहे हैं, वह भी सीमित संसाधनों में। एक ऐसी बीमारी के खिलाफ जिसका अब तक कोई कारगर इलाज नहीं है।
पहली बार किसी ऐसी बीमारी से जूझना पड़ रहा है, जिसके उपचार के लिये देश में कोई कारगर रणनीति नहीं बन पायी। शुरुआत में हमने उन पर फूल भी बरसाये और ताली-थाली भी बजायी। उन्हें कोरोना योद्धा की संज्ञा भी दी।
लेकिन धीरे-धीरे बढ़ता रोग का दायरा उनकी मुश्किलें बढ़ाता गया। सिंतबर तक ऊंचाई चढ़ने के बाद कोरोना संक्रमण में गिरावट के बाद इस बिरादरी ने चैन की सांस ली थी कि महामारी को हमने हरा दिया।
लेकिन कोविड-19 के बदले वेरिएंट ने देश में जो कहर बरपाया है, उसने चिकित्सकों व अन्य कर्मियों की मुसीबतों को चरम पर पहुंचा दिया। तेज संक्रमण और धड़ाधड़ बीमार पड़ते लोगों से अस्पताल पट गये।
अस्पतालों में ऑक्सीजन बेड नहीं हैं, वेंटिलेटर नहीं हैं और सहायक दवाइयों का भारी अभाव है। जो संपन्न हैं, वे दोनों हाथों से लूट रहे निजी अस्पतालों की ओर उन्मुख हुए। गरीब और मध्य वर्ग सरकारी अस्पतालों के भरोसे लाचार हैं।
जहां चिकित्सा साधनों का लगातार टोटा बना हुआ है। देश के सत्ताधीशों की नाक के नीचे बिना ऑक्सीजन के मरते लोगों की खबरें रोज आंकड़ा बढ़ा रही हैं। सुप्रीम कोर्ट व हाईकोर्ट ऑक्सीजन की कमी से होने वाली मौतों को अपराध की संज्ञा दे रहे हैं।
कोर्ट की बार-बार की जा रही टिप्पणियों के बावजूद सत्ताधीश मौन बने हुए हैं। इस संकट का सबसे बड़ा पहलू यह है कि लोगों की मौतों का गुस्सा डॉक्टरों व चिकित्सा स्टॉफ को झेलना पड़ रहा है।
हालांकि, आपदा काल के कानून लागू हैं लेकिन डॉक्टरों को लगातार धमकाया जा रहा है और मारपीट तक की जा रही है। अपनी जान जोखिम में डालकर इलाज करने वाली बिरादरी इन हमलों से आहत है।