दिमाग को रखना चाहते हैं स्वस्थ तो रोजाना चलाएं साइकिल, शोध में खुलासा
रोजाना कसरत करना दिमाग को कई तरह के नुकसान से बचाता है और बढ़ती उम्र में उसे स्वस्थ रखने का काम करता है। एक हालिया शोध में यह दावा किया गया है। जर्मन वैज्ञानिकों ने पाया कि साइकिल चलाने से 52 साल की उम्र के प्रतिभागियों के दिमाग के ग्रे मैटर में आने वाली कमी की प्रक्रिया रुक गई। लेकिन, शोधकर्ताओं ने कहा कि कोई भी शारीरिक गतिविधि जो आपके दिल को जोर से धड़काती है, उनका भी दिमाग पर समान प्रभाव पड़ता है।
दिमाग में मौजूद ग्रे मैटर उम्र बढ़ने पर सिकुड़ने लगती है जिससे कई तरह की याददाश्त संबंधी समस्या बढ़ जाती हैं और समस्याओं का समाधान करने की क्षमता कम होने लगती हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि दिमाग तक ऑक्सजीन से भरपूर खून पहुंचाने की धमनियों की क्षमता कम हो जाती है।
जोरदार कसरत जैसे साइकिलिंग, दौड़ना व तैरने से दिमाग में ऑक्सीजन पहुंचने की दर बढ़ जाती है और इससे मस्तिष्क को स्वस्थ रहने में मदद मिलती है। ऑक्सीजन दिमाग की कोशिकाओं को स्वस्थ रहने और ठीक से कार्य करने में मदद करती है। हर हफ्ते ढाई घंटे मध्यम तीव्रता वाला व्यायाम करना चाहिए ताकि दिमाग को स्वस्थ रखा जा सके।
ऐसे किया शोध-
जर्मन सेंटर फॉर न्यूरोडिजेनरेटिव डिजीज के शोधकर्ताओं ने 2,013 वयस्कों पर शोध किया। प्रतिभागियों पर वर्ष 1997 से लेकर 2012 तक निगरानी की गई। इस दौरान उनकी कार्डियोरेस्पाइरेट्री (दिल और सांस संबंधी) स्वास्थ्य की जांच की गई। ब्रीथिंग उपकरण की मदद से साइकिलिंग के बाद उनकी जांच की गई। इसके बाद प्रतिभागियों के दिमाग के एमआरआई स्कैन से कसरत के डाटा की तुलना की गई। टीम ने पाया कि स्वस्थ प्रतिभागियों के दिमाग में कसरत न करने वालों की तुलना में ज्यादा ग्रे मैटर था। ग्रे मैटर संवेदी धारणा को जैसे देखना, सुनना, याददाश्त, भावनाओं, बातचीत, फैसले लेने की क्षमता और आत्म अनुशासन को नियंत्रित करते हैं।
शारीरिक गतिविधि सुधारती है दिमाग की सेहत-
शोधकर्ता माइकल जॉयनर ने कहा, इस शोध से पता चलता है कि शारीरिक गतिविधियां और अच्छी सेहत दिमाग में आने वाली उम्र संबंधी समस्याओं को दूर करने में प्रभावी साबित हो सकता है। शारीरिक गतिविधि से दिमाग में मौजूद रक्त वाहिकाओं के कार्य में सुधार होता है। यह शोध पत्रिका मायो क्लीनिक प्रोसिडिंग में प्रकाशित किया गया है।
यह शोध साल 2013 में वयस्कों पर किया गया। जिसमें साल 1997 से लेकर 2012 तक इस शोध में भाग लेने वाले प्रतिभागियों की निगरानी की गई।