कैसे हुई मां सरस्वती की उत्पत्ति, जानिए ज्ञान की देवी मां सरस्वती के हाथ में क्यों है वीणा ?
वसंत पंचमी का त्योहार विद्या, ज्ञान, संगीत और कला की देवी मां सरस्वती को समर्पित होता है। इस दिन को बसंत ऋतु के आगमन के रूप में भी मनाया जाता है। मान्यता है कि जब माता सरस्वती अपने वीणा को बजाती हैं, तो उसमें से निकलने वाली धुन चारों ओर फैले हुए अंधकार को दूर करती है। चलिए आज बताते हैं वसंत पंचमी से जुड़ी सबसे प्रसिद्ध कथा के बारे में
देवी सरस्वती का प्रकट होना
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, सृष्टि की रचना के समय ब्रह्माजी ने इंसानों की रचना की, लेकिन उन्हें लगा कि धरती पर सब कुछ शांत और नीरस है। चारों ओर बस मौन पसरा हुआ था। तब उन्होंने अपने कमंडल से जल छिड़का और देवी सरस्वती प्रकट हुईं। देवी सरस्वती के हाथ में वीणा, पुस्तक और माला थी। उन्होंने जब वीणा बजाई, तो दुनिया में स्वर, संगीत और वाणी का संचार हुआ। तभी से मां सरस्वती को ज्ञान, विद्या और संगीत की देवी माना जाने लगा और उनके प्रकट होने के दिन को वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाने लगा।
देवता और असुर दोनों ही करते मां सरस्वती की पूजा
समस्त संसार को ध्वनि प्रदान करने वाली मां सरस्वती की पूजा देवता और असुर दोनों ही करते हैं। इस दिन लोग अपने-अपने घरों में माता की प्रतिमा स्थापित करते हैं। कई स्कूल, कॉलेजों, समितियों और संस्थाओं में कभी सरस्वती पूजन का आयोजन होता है। यह दिन विद्या आरंभ के लिए शुभ माना जाता है, इसलिए इस दिन छोटे बच्चों की पहली पढ़ाई (अक्षर लेखन) की परंपरा होती है। सरस्वती पूजा विशेष रूप से छात्रों, कलाकारों और संगीतकारों के लिए महत्वपूर्ण होती है। इस दिन लोग पीले वस्त्र पहनते हैं, क्योंकि पीला रंग खुशी, समृद्धि और ज्ञान का प्रतीक माना जाता है।
कामदेव और रति की कथा
एक अन्य कथा के अनुसार, भगवान शिव की घोर तपस्या से परेशान होकर देवी पार्वती ने ’’कामदेव’’ से अनुरोध किया कि वे शिवजी की तपस्या भंग करें। वसंत ऋतु में कामदेव ने अपने पुष्प बाणों से शिवजी को जगाने का प्रयास किया। हालांकि, शिवजी ने क्रोधित होकर कामदेव को भस्म कर दिया। बाद में रति के अनुरोध पर शिवजी ने उन्हें पुनर्जीवित कर दिया। इसलिए, वसंत पंचमी को प्रेम और सौंदर्य का भी प्रतीक माना जाता है। वसंत पंचमी केवल धार्मिक महत्व ही नहीं रखती, बल्कि यह प्रकृति और ऋतुओं के बदलाव का भी उत्सव हैा