भारत के इस मंदिर में रखा है भगवान श्रीकृष्ण का हृदय, पढ़ें जगन्नाथ जी की कथा
श्री कृष्ण हृदय : क्या आपको पता है कि आज भी भारत में ही सुरक्षित है भगवान कृष्ण का ह्रदय? अगर नहीं तो आइये पंडित इंद्रमणि घनस्याल से जानते हैं यह अद्धभुत और अविश्वस्नीय प्रसंग. जैसा कि हम सभी जानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण की मृत्यु अर्थात उनके वैकुण्ठ पधारने के बाद पांचों पांडवों ने मिलकर भगवान श्रीकृष्ण के शरीर का हिन्दू रीति-रिवाज से अंतिम संस्कार किया था परन्तु स्वयं अग्निदेव के पास भी वह सामर्थ्य नहीं था कि वे कन्हैया के शरीर को जलाकर पंचतत्वों में विलीन कर सकें. इस वजह से पांडवों ने कन्हैया के शरीर को द्वारकासागर में बहा दिया. कई पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान का वह शरीर भारत के पश्चिम से पूर्व की ओर बहता हुआ आया और लकड़ी के एक विशाल टुकड़े में परिवर्तित हो गया.
जब आया इन्द्रयम को स्वप्न
जिसके बाद पूरी के तत्कालीन राजा इन्द्रयम को भगवान श्रीकृष्ण ने स्वप्न में आकर उन लकड़ियों से मूर्ति बनवाकर एक भव्य मंदिर में स्थापित कराने का आदेश दिया. राजा बहुत ही धार्मिक प्रवत्ति का था, वह अगले ही दिन वो लकड़ी राजमहल में ले आया, लेकिन अब विपदा यह थी कि कोई भी शिल्पकार लकड़ी की मूर्ति बनाने में सक्षम नहीं था, जिस कारण राजा बहुत चिन्तित रहने लगा.
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जब विश्वकर्मा बन आए शिल्पकार
तभी एक दिन एक बूढ़ा शिल्पकार सामने से राजा के पास आया और बोला, “राजन! मैं आपकी चिंता भली-भांति समझता हूं, आप चिंता ना करें, मैं भगवान की मूर्ति बनाऊंगा परंतु मैं एक अनुग्रह है कि जबतक मैं मूर्ति बनाने का काम ना पूरा कर लूं, कोई भी उस कक्ष में नहीं आएगा, नहीं मुझे टोकेगा. अगर कोई बीच में आया तो मैं उसी क्षण काम बंद कर दूंगा.” ऐसी मान्यता है कि वह मूर्तिकार कोई और नहीं अपितु विश्वकर्मा थे, जिन्हें स्वयं भगवान ने भेजा था. राजा ने शिल्पकार कि यह शर्त मान ली.
जब राजा ने तोड़ी शर्त
काफी दिनों तक उस कक्ष से ठोक-पीट की आवाजें आती रहीं परंतु एक दिन वह आवाज़ बंद हो गयी, काफी समय से कोई आवाज़ ना आने के कारण राजा को संदेह हुआ और वो कक्ष में प्रवेश कर गया, वहां जाकर उसे बलदेव, सुभद्रा और प्रभु जगन्नाथ की अधूरी मूर्तियों के दर्शन हुए. उस रात एक बार फिर भगवान ने उसके स्वप्न में आकर आदेश दिया कि वह उन्हीं मूर्तियों को मंदिर में स्थापित कराए और पुजारी को समुन्द्र किनारे भेजे, जहां से उन्हें स्वय भगवान कृष्ण के ह्रदय की प्राप्ति होगी और वह उसे लाकर जगन्नाथ जी की मूर्ति में स्थापित कर दें परंतु इस पूरी प्रक्रिया में पुजारी के नेत्रों पर पट्टी बंधी हो.
जब सामने आता है श्रीकृष्ण का ह्रदय
आज भी 12 वर्षो के अंतराल में तीनों विग्रहों को बदला जाता है और उस समय पूरे शहर की बिजली बंद कर दी जाती है और मंदिर को सी.आर.पी.एफ के हवाले कर दिया जाता है. केवल एक पुजारी को मंदिर में प्रवेश मिलता है, जिसकी आखों पर अंधेरा होने के बावजूद भी पट्टी बांधी जाती है और वह पुजारी जगन्नाथ जी के पुराने विग्रह से ह्रदय, जिसे वहां की भाषा में “ब्रह्मा पदार्थ” कहते हैं, निकालकर नए विग्रह में विराजमान करा देते हैं.