कैसे हुई थी भगवान गणेश जी की उत्पत्ति? जानें उनके जन्म से जुड़ी ये पौराणिक कथाएं

दिल्लीः गणेश चतुर्थी इस बार पूरे भारत में 31 अगस्त को मनाई जाएगी. गणेश चतुर्थी भगवान शिव और देवी पार्वती के पुत्र भगवान गणेश के जन्मोत्सव के रूप में मनाई जाती है. हिंदू परंपराओं के अनुसार, किसी भी शुभ कार्य को शुरू करने से पहले गणेश की हमेशा प्रार्थना की जाती है. भगवान गणेश ज्ञान, समृद्धि और सौभाग्य के प्रतीक हैं. भगवान गणेश को एकदंत, लंबोदर, विकथ, विनायक समेत कई नामों से जाना जाता है. पंडित इंद्रमणि घनस्याल बताते हैं कि भगवान गणेश जी के जन्म को लेकर कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं. आइए जानते हैं, कैसे भगवान गणेश जी का जन्म हुआ था.

पहली कथा
वराह पुराण के अनुसार, गणेशजी को भगवान शिवजी ने पंचतत्वों से रूप दिया था. गणेश जी ने विशिष्ट और अत्यंत रुपवान रूप पाया था. जब देवी-देवताओं को गणेश जी के विशिष्टता के बारे में मालूम हुआ तो उनको भय सताने लगा कि गणेश जी आकर्षण का केंद्र ना बन जाए. तब शिवजी ने गणेश जी का पेट बड़ा और मुंह हाथी का लगा दिया था. इस तरह भगवान गणेश जी की उत्पत्ति हुई थी.

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दूसरी कथा
शिवपुराण के अनुसार, माता पार्वती ने अपने शरीर पर लगाई हल्दी से एक पुतला तैयार किया. उन्होंने बाद में पुतले में प्राण डाल दिए. इस तरह से भगवान गणेश का जन्म हुआ था. इसके बाद माता पार्वती ने गणेश को आदेश दिए कि द्वार पर से किसी को भी अंदर नहीं आने देना. जब गणेश जी द्वार पर खड़े थे, तब शिवजी पहुंचे. गणेश जी शिवजी को नहीं जानते थे तो गणेश जी ने शिवजी को अंदर प्रवेश करने से मना कर दिया. इस पर शिवजी क्रोधित हो गए और गणेश जी का त्रिशूल से सिर काट दिया.

पार्वती बाहर आई और विलाप करने लगीं और शिवजी से गणेश को वापस जिंदा करने को कहा. तब शिवजी ने गरूड़ को उत्तर दिशा में जाने का आदेश दिया और कहा कि जो भी मां अपने बच्चे की तरफ पीठ कर के सोई हो उस बच्चे का सिर ले आना. तब गरूड़ शिशु हाथी का सिर ले आए. भगवान शिवजी ने वह बालक के शरीर से जोड़ दिया. उसमें प्राण डाल दिए. इस तरह गणेश को हाथी का सिर मिला.

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