सांप्रदायिक सौहार्द के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है रानी लक्ष्मीबाई के नाम की यह ताजिया,पढ़े विस्तार से

दिल्लीः यूपी का झांसी अपने सांप्रदायिक सौहार्द के लिए पूरी दुनिया में मशहूर है.हिंदू मुस्लिम एकता के यहां अनेकों उदाहरण मिलते हैं. ऐसा ही एक उदाहरण है रानी लक्ष्मीबाई का ताजिया. मुहर्रम के पवित्र महीने में झांसी में एक ताजिया रानी लक्ष्मीबाई के नाम का भी होता है. इस ताजिया को स्थापित भी लक्ष्मीबाई द्वारा ही किया गया था. दरअसल 1851 में इस ताजिया को रानी लक्ष्मीबाई शुरू किया गया था. जबकि उन्होंने इसकी जिम्मेदारी मौलाना वकस को सौंपी थी. आज 171 साल बाद भी मौलाना वकस के खानदान द्वारा इस प्रथा को जारी रखा गया है.

वर्तमान समय में इस ताजिया को मौलाना वकस के वंशज रशीद मियां तैयार करते हैं. उन्‍होंने बताया कि जब महाराजा गंगाधार राव और महारानी लक्ष्मीबाई के पुत्र गंगाधर राव का जन्म हुआ, उसके बाद इस ताजिया की स्थापना करवाई थी. इस ताजिया को तैयार करने वालों में शामिल शमीम खान ने बताया कि महारानी लक्ष्मीबाई ने रानी महल में इस ताजिया को स्थापित किया था. उनके देहांत के बाद जब अंग्रेजों का झांसी पर कब्जा हुआ तो उन्होंने इस ताजिया पर रोक लगाने का प्रयास किया, लेकिन उस समय भी मौलाना वकस के वंशजों ने यह ताजिया बनाई. आज भी झांसी शहर में जो भी ताजिया तैयार की जाती है, वह सभी सबसे पहले रानी लक्ष्मीबाई के ताजिया को सलामी देने आते हैं.

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वर्तमान में शहर कोतवाल इस ताजिया का संरक्षक होता है. मोहर्रम महीने के 10वें दिन ताजिया जुलूस निकाला जाता है. ताजिया इराक में बनें इमाम हुसैन के दरगाह की कॉपी है. ताजिया बनाने की शुरुआत भी भारत से ही हुई थी.उस समय के बादशाह तैमूर लंग ने इमाम हुसैन की दरगाह की नकल बनवाई और उसे ताजिया का नाम दिया. इसके माध्यम से इमाम हुसैन और उनके 72 साथियों की शहादत को याद किया जाता है. शमीम खान ने बताया कि मोहर्रम का चांद निकलने के पहले दिन के साथ ही ताजिया रखने का सिलसिला शुरू हो जाता है और 10 वें दिन सभी ताजिया को दफन किया जाता है.

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