Pithoragarh: नवजात की दुनिया शुरू होने से पहले खत्म

दिल्लीः उत्तराखंड के पर्वतीय इलाकों में आज भी गर्भवती महिलाओं का सुरक्षित प्रसव चमत्कार ही माना जाता है, क्योंकि आधुनिकता के इस दौर में ऐसी घटनाएं देखने को मिलती हैं, जो पहाड़ों में स्वास्थ्य सेवाओं की बदहाली को चीख-चीख कर बताती हैं. जहां प्रसव की उचित सुविधा न मिलने पर कभी महिला, तो कभी नवजात शिशुओं की मौत हो जाती है और कभी तो प्रसव के लिए महिलाएं अस्पतालों के चक्कर ही काटते रह जाती हैं. बदहाल स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी ऐसी ही एक मामला फिर से पिथौरागढ़ महिला अस्पताल (Female Hospital in Pithoragarh) में देखने को मिला है, जहां प्रसव के लिए आई एक मूक बधिर महिला ने बच्चे को जन्म दिया. इसके बाद नवजात को उचित इलाज न मिल पाने से उसे 250 किलोमीटर दूर हल्द्वानी के सुशील तिवारी अस्पताल रेफर किया गया, जहां उसकी दुनिया शुरू होने से पहले ही खत्म हो गई. मां इशारों से अपने बच्चे का हाल पूछते रही, लेकिन जिम्मेदार सिस्टम के पास इसका कोई जवाब नहीं था.

पीड़ित परिजनों ने पिथौरागढ़ महिला अस्पताल के स्टाफ पर लापरवाही का आरोप लगाया है. परिजनों का कहना है कि अस्पताल प्रबंधन ने डिलीवरी में काफी देर की. इसके साथ गर्भवती महिला की विकलांगता का मजाक बनाते हुए डिलीवरी होने के बाद बच्चे के स्वास्थ्य पर कोई ध्यान नहीं दिया गया.

पिथौरागढ़ महिला अस्पताल का यह कोई पहला मामला नहीं है. पिछले 15 दिनों में ही यहां इलाज के अभाव में दो नवजातों की मौत हुई है. आए दिन पिथौरागढ़ का महिला अस्पताल विवादों में ही रहता है. अभद्रता की शिकायतें जनता करती आई है. संसाधनों और विशेषज्ञों की कमी के चलते यहां से गर्भवती महिलाओं और शिशुओं को 250 किलोमीटर दूर के शहरों में रेफर किया जाता है, जिसमें ज्यादातर मामलों में कई घरों की खुशियां बर्बाद हुई हैं.

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