सरकारों द्वारा आर्थिक कुप्रबंधन ने श्रीलंका के सार्वजनिक वित्त को कमजोर कर दिया

दिल्लीः श्रीलंका में चल रहे आर्थिक संकट के बीच अब ऐसा लगता है कि सरकार से राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे की छुट्टी हो चुकी है. देश के संसदीय अध्यक्ष ने शनिवार को कहा कि राष्ट्रपति भवन पर कब्ज़ा और प्रधानमंत्री के घर पर आग लगाने की घटना के दबाव में झुकते हुए राष्ट्रपति राजपक्षे 13 जुलाई को अपने पद से इस्तीफा दे देंगे.

बिजली बंद होने, बुनियादी सामानों की कमी और बढ़ती कीमतों से नाराज सरकार विरोधी प्रदर्शनकारी लंबे समय से राजपक्षे के पद छोड़ने की मांग कर रहे थे, लेकिन राजपक्षे ने महीनों तक मांगों पर ध्यान न देते हुए, सत्ता पर बने रहने के प्रयास में देश में आपातकाल लगा दिया.

IMF से चल रही रेस्क्यू प्लान की बातचीत और ऋण के पुनर्गठन के प्रस्तावों के बीच देश में चल रही हिंसा और राजनीतिक अस्थिरता से दोनों महत्वपूर्ण कदम पटरी से उतर सकते है. ऐसे में श्रीलंका में नई बनने जा रही सरकार के लिए चुनौतियां कम नहीं होगी.

श्रीलंका में कैसे बिगड़े हालात?
विश्लेषकों का कहना है कि देश की सरकारों द्वारा आर्थिक कुप्रबंधन ने श्रीलंका के सार्वजनिक वित्त को कमजोर कर दिया है, जिससे राष्ट्रीय व्यय आय से अधिक हो गया है और व्यापार योग्य वस्तुओं और सेवाओं का उत्पादन अपर्याप्त स्तर पर हो गया है.

2019 में सत्ता संभालने के तुरंत बाद राजपक्षे सरकार द्वारा टैक्स में भरी कटौती करने से स्थिति और खराब हो गई थी. कुछ दिनों बाद कोरोना की मार ने श्रीलंका के फाइनेंस की कमर तोड़ दी.

महामारी ने देश के राजस्व जुटाने के आधार पर भारी संकट पैदा कर दिया. श्रीलंका के आकर्षक पर्यटन उद्योग को महामारी की वजह से काफी नुकसान झेलना पड़ गया. साथ ही विदेशों में रह रहे नागरिकों ने भी देश में पैसा भेजना कम कर दिया.

सरकारी वित्त और बड़े विदेशी ऋण को चुकाने में असमर्थता के बारे में चिंतित होकर रेटिंग एजेंसियों ने वर्ष 2020 के बाद से श्रीलंका की क्रेडिट रेटिंग को डाउनग्रेड कर दिया था, परिणाम स्वरूप देश को अंतरराष्ट्रीय वित्तीय बाजारों से ही बाहर कर दिया गया.

अर्थव्यवस्था को बचाए रखने के लिए सरकार ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार को जरुरत से अधिक प्रयोग में लिया, दो वर्षों में फॉरेन रिज़र्व को 70% से अधिक कम कर दिया गया.

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