उत्तराखंड के बागेश्वर में बढ़ती खड़िया खदानों की संख्या से स्थानीय लोग चिंतित

दिल्लीः उत्तराखंड का बागेश्वर जिला भारत में खड़िया पत्थर का सबसे समृद्ध भंडार है. जिले में खड़िया की करीब 135 खदानों को खनन की मंजूरी मिल चुकी है. इससे अच्छा खासा राजस्व सरकार को मिल रहा है. हालांकि, पर्यावरण की नजरिए से नाजुक और भूकंप की दृष्टि से संवेदनशील पहाड़ी क्षेत्र में खनन ने कई सवाल खड़े किए हैं. सरकार का दावा है कि सभी मानदंडों का कड़ाई से पालन किया जा रहा है और खनन पर अच्छी तरह से नजर रखी जा रही है, लेकिन स्थानीय लोग इससे असहमत नज़र आ रहें हैं.

वैसे तो संपूर्ण बागेश्वर के कई क्षेत्रों को अतिसंवेदनशील क्षेत्र का दर्जा प्राप्त है, मगर यहां किलपारा गांव अतिसंवेदनशील क्षेणी में आता है. यहां वर्ष 1982 में भयंकर भूस्खलन हुआ था. अब यहां भी खान व्यवसायियों की नजर लग गई है तथा खड़िया लीज के आवेदन दिए गए हैं. उधर, बढ़ते खनन को लेकर स्थानीय रहवासी चिंतित हैं. उन्होंने अपनी पैतृक भूमि को बचाने के लिए प्रशासन को आपत्ति पत्र दिए हैं, साथ ही मामला कोर्ट तक ले जाने की कार्यवाही भी शुरू कर दी है.

किलपारा में वर्ष 1982-83 से गांव में भूस्खलन हुआ था, जिससे कई परिवारों के मकान ध्वस्त हुए. बताया जाता है कि इसका असर कुंवारी गांव में भी पड़ा तथा यह गांव भी लगातार धंस रहा है. पूर्व जिला पंचायत सदस्य भागीरथी देवी ने बताया कि कुछ बाहरी लोग अब गांव की भूमि में खड़िया खनन के लिए लीज लेने के प्रयास में लगे हैं तथा उनके द्वारा ऐसे परिवारों से अनापत्ति पत्र लिए जा रहे हैं. कई रहवासी पूर्व में हुए भूस्खलन के चलते 40- 50 साल पूर्व हल्द्वानी आदि स्थानों में बस चुके हैं. उन्होंने कहा कि अनापत्ति देने वाले ये परिवार गांव में खेती बाड़ी व निवास नहीं करते हैं. उन्होंने बताया कि इसके बाद भी सरकार व प्रशासन ने क्षेत्र में खान व्यवसायी को खनन लीज स्वीकृति प्रदान की तो वे इसके खिलाफ अदालत जाने की तैयारी भी कर रहे हैं.

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