क्या है मां काली का स्वरूप,उन्हें क्यों शक्ति का रूप माना जाता है ?

दिल्लीः हिंदुओं की आराध्य शक्ति की देवी मां काली चर्चाओं में हैं. शास्त्र कहते हैं कि ईसा के सैकड़ों सालों पहले से काली के स्वरूप की पूजा लोग करते रहे हैं. वो बुराई और बुराई की ताकतों का संहार करने वाली देवी हैं. ऐसी ताकत जो किसी भी बुरी ताकत को परास्त कर सकती हैं. विवेकानंद और रामकृष्ण परमहंस उनके परम उपासक थे.

काली या महाकाली को कई नामों से बुलाया जाता है. वह सुन्दरी रूप वाली भगवती पार्वती का काला और भयप्रद रूप हैं. जिनकी उत्पत्ति असुरों के संहार के लिए हुई थी. उनको खासतौर पर बंगाल, ओडिशा और असम में पूजा जाता है. काली को शाक्त परम्परा की दस महाविद्याओं में एक भी माना जाता है. वैष्णो देवी में दाईं पिंडी माता महाकाली की ही है |

‘काली’ का मतलब है काल या समय से पैदा हुईं। वह बुराई, दानवीय प्रकृति के लोगों को कभी माफ नहीं करतीं। बुराई को दमित करती हैं. इसलिए माँ काली अच्छे मनुष्यों की शुभेच्छु और पूजनीय हैं. बांग्ला में काली का एक और अर्थ होता है – स्याही या रोशनाई.

दानवों के संहार की कहानी
हिन्दू पौराणिक कथाओं के अनुसार शुम्भ और निशुम्भ दो दानव भाई थे जो महर्षि कश्यप और दनु के पुत्र तथा रम्भ , नमुचि , हयग्रीव , स्वरभानु , दैत्यराज , करंभ , कालकेतु और वप्रिचिती के भाई थे. दुर्गा चालिसा में भी इन दोनों भाइयों और काली की महिमा का बखान किया गया है.

कहा जाता है कि देवराज इन्द्र ने एक बार नमुचि को मार डाला. तो नाराज होकर शुम्भ-निशुम्भ ने उनसे इन्द्रासन छीन लिया.शासन करने लगे. इसी बीच पार्वती ने महिषासुर को मारा. तब शुम्भ और निशुम्भ उनसे बदला लेने के लिए निकल पड़े.

प्रमुख मंदिर
कोलकाता के बैरकपुर का दक्षिणेश्वर काली मंदिर सबसे प्रसिद्ध काली मंदिरों में एक है. ये ऐतिहासिक है. मंदिर की मुख्य देवी भवतारिणी है, जो हिन्दू देवी काली माता ही है. कोलकाता के कालीघाट मन्दिर के बाद ये सबसे प्रसिद्ध काली मंदिर है. इसे 1854 में जान बाजार की रानी रासमणि ने बनवाया था.

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