चमोली की रैणी आपदा के बाद एक और नगर पर आपदा का संकट बताया गया
दिल्लीः उत्तराखंड के चमोली ज़िले के रैणी में एक साल पहले आई आपदा में 200 लोगों की जान गई थी, उससे सिर्फ एक घंटे की दूरी पर बसे नगर जोशीमठ के अस्तित्व के लिए बड़ा खतरा पैदा हो गया है. अगर यहां विकास कार्यों के नाम पर हो रहे भारी उत्खनन और खुदाई को तत्काल नहीं रोका गया, तो यह नगर का नगर तबाह हो सकता है. बद्रीनाथ धाम और हेमकुंड साहिब के मुख्य पड़ाव जोशीमठ के बारे में ये बातें यहां की ज़मीन पर अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों ने कही हैं और तत्काल एक संपूर्ण स्टडी कराए जाने की सिफारिश भी की है.
भगवान नरसिंह की नगरी और शंकराचार्य जी की तपस्थली कहा जाने वाला जोशीमठ भूस्खलन की जद में इस तरह है कि यहां कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है. वैज्ञानिकों ने माना है कि पहले ही भौगोलिक और कुदरती तौर पर कमज़ोर इस इलाके में लगातार हो रहे निर्माणों ने अतिरिक्त चिंता बढ़ा दी है. 7 फरवरी 2021 को आई प्राकृतिक आपदा से सुर्खियों में आई जल विद्युत परियोजना एनटीपीसी की सुरंग, जो जोशीमठ नगर से गुज़र रही है, उसे भी एक्सपर्ट ने जोशीमठ के लगातार भूस्खलन की ज़द में आने का सबसे बड़ा कारण माना है.
‘जोशीमठ बचाओ संघर्ष समिति’ के संयोजक अतुल सती, कमल रतूड़ी ने बताया कि जोशीमठ नगर के लोगों और समिति ने सरकार से जोशीमठ का भूगर्भीय सर्वे कराने की मांग की थी, लेकिन सरकार ने जब सर्वे नहीं किया, समिति ने स्वतंत्र भूवैज्ञानिकों से सर्वेक्षण कराया. इस सर्वे टीम में सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त चार धाम हाई पावर्ड कमेटी के जियोग्राफी एक्सपर्ट नवीन जुयाल और गढ़वाल यूनिवर्सिटी के वीसी एसपी सती और बीएचयू के प्रोफेसर शुभ्र शर्मा शामिल थे.
क्या हैं एक्सपर्ट की सलाहें और चेतावनियां?
— जोशीमठ में ट्रीटमेंट कार्य के साथ-साथ वृक्षारोपण हो ताकि भूस्खलन को रोका जा सके.
— चार धाम रोड के जिस 20 किमी हिस्से को चौड़ा किया जा रहा है, वहां अधिकांश हिस्से में ज़मीन धंसकने की आशंका है.
— लैंडस्लाइड ज़ोन में किसी भी निर्माण के लिए किसी बोल्डर को खोदकर या धमाके से हटाना नहीं चाहिए.
— किसी भी क्षेत्र में नये निर्माण से पहले वहां की स्थिरता की सही जांच होनी चाहिए.
— इस पूरे नगर क्षेत्र का एक डिटेल्ड, संपूर्ण और केंद्रित भूगर्भीय अध्ययन होना चाहिए.