प्रकाश का सूत्र
बुद्ध के प्रथम शिष्य आनंद भ्रमण के दौरान जब श्रावस्ती पहुंचे और उन्होंने ‘बुद्धम शरणम गच्छामि’ का उदघोष किया, तो श्रेष्ठिजनों ने आनंद से पूछा, ‘आपके इस कथन में तो ‘बुद्ध की शरण’ में जाने का आह्वान किया गया है। क्या यह बुद्ध के ‘अहंकार’ का द्योतक नहीं है?’आनंद ने शांतभाव से उत्तर दिया’ ‘श्रेष्ठजनों, जब समूह में भगवान बुद्ध हमारे साथ चलते हैं, तब स्वयं बुद्ध भी तो इसी सूत्र का उद्घोष करते हैं। इसमें व्यक्ति विशेष की शरण में जाने का भाव बिल्कुल नहीं है। भगवान बुद्ध का नाम तो ‘तथागत’ था, जो ज्ञान प्राप्ति के बाद ही ‘बुद्ध’ कहलाए। जिस ‘प्रकाश’ ने उन्हें तथागत से ‘बुद्ध’ बनाया, उसी दिव्य, दूरदर्शी विवेक रूपी प्रकाश की शरण में जाने का यह सूत्र है।