संतोष से सुख

एक दार्शनिक से किसी ने पूछा, ‘आप इस दुःखी और असंतुष्ट संसार के बीच सुखी और संतुष्ट कैसे हैं?’ उन्होंने उत्तर दिया’ ‘मैं अपनी आंखों का सही उपयोग जानता हूं। जब मैं ऊपर देखता हूं, तो मुझे स्वर्ग याद आता है, जहां मुझे जाना है।

नीचे देखता हूं तो यह सोचता हूं कि जब मेरी कब्र बनेगी, तो बहुत कम जगह लगेगी। और जब मैं दुनिया में चारों ओर देखता हूं तो मुझे मालूम होता है कि करोड़ों आदमी ऐसे हैं, जो मुझसे भी दुःखी हैं।

उसी तरह मैं संतोष पाता हूं।’ यह बात सुन कर व्यक्ति को समझ में आ गया कि सांसारिक सुख की प्राप्ति के लिए खुद अंतर्मन को समझाने की जरूरत है क्योंकि अगर आप हमेशा दुःख को ही जीते रहे तो आपके जीवन से सुख बहुत दूर चला जायेगा।

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