मंदाकिनी में बढ़ते प्रदूषण को लेकर संतों में आक्रोश

सतना। धार्मिक धरोहरों, आस्था केंद्रों व पुरातात्विक महत्व के स्थलों को संरक्षित करने में आखिर जिला प्रशासन रुचि क्यों नहीं दिखाता है? यह ऐसा सवाल है जिसका जवाब किसी अधिकारी के पास नहीं है।

अधिकारियों का यही रवैया चित्रकूट की लाइफ लाइन माने जाने वाली मंदाकिनी नदी के अस्तित्व पर ग्रहण लगा रहा है।

इस मामले में जिला प्रशासन की संवेदनशीलता का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि चित्रकूट से प्रवाहित होने वाली जिस परम पुण्य सलिला मंदाकिनी के संरक्षण का जिला प्रशासन को स्वमेय दायित्व संभालना चाहिए, वहीं प्रशासन नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश के बाद भी मंदाकिनी को बचाने कोई कारगर कदम नहीं उठा पा रहा है।

जगह-जगह मंदाकिनी में गंदगी घुल रही है और प्रशासन हाथ पर हाथ धरे बैठा है। जानकारों का मानना है कि यदि जिला प्रशासन केवल एनजीटी के निर्देशों का पालन करा दे तो मोक्षदायिनी मंदाकिनी के अस्तित्व पर लगे ग्रहण को दूर किया जा सकता है।

मंदाकिनी नदी को प्रदूषण मुक्त करने के लिए बनाया गया सीवरेज ट्रीटमेंट को लेकर जिम्मेदार गंभीर नहीं है। सीवरेज प्लांट न बना पाने की कीमत मंदाकिनी को चुकना पड़ रहा है।

जिस पवित्र नदी की डुबकी लगाकर श्रद्धालु अपनी आस्था का इजहार करते हैं वहीं मंदाकिनी प्रदूषित होकर बीमारियां बाटने लगी है।

धर्मनगरी के कई मोहल्लों से निकलने वाली नालियां बड़े नालों में मिलती है और वे नाले मंदाकिनी नदी में मिल रहे हैं। नालों का पानी इतना अधिक प्रदूषित है कि पानी में ऑक्सीजन सहित अन्य कई प्रमुख तत्वों की कमी हो गई है।

इस नदी का पानी अब सीधे उपयोग करने के लायक नहीं है। नदी में नहाने से खुजली और चर्मरोग होने की संभावना भी चिकित्सा जता रहे हैं।

प्रेम नगर निवासी विपिन अरजरिया ने सतना लोकोपयोगी कोर्ट में मंदाकिनी को लेकर याचिका लगाई थी। इसमें प्रदूषण, बदहाली व अतिक्रमण को मुद्दा बनाया गया था।

उनकी तरफ से अधिवक्ता राजीव खरे ने कलेक्टर सतना, कलेक्टर कर्वी, क्षेत्री प्रदूषण अधिकारी सतना, सीएमओ नगर पंचायत चित्रकूट को पक्षकार बनाया था।

याचिका में कहा गया था कि नदी की बदहाली के लिए ये सभी जिम्मेदार हैं? उन्होंने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन नहीं किया, जिससे ये हालात बने हैं।

लिहाजा, इन सभी के खिलाफ कार्रवाई की जाए और नदी को लेकर उचित कदम उठाने दिशा-निर्देश जारी किए जाएं।

इसको लेकर कोर्ट ने सभी पक्षकारों को नोटिस भी जारी किया, लेकिन कलेक्टर सतना व सीएमओ चित्रकूट अपना पक्ष रखने न कभी आए और न ही प्रतिनिधि या अधिवक्ता भेजा।

याचिकाकर्ता के वकील की मानें तो केवल प्रदूषण को लेकर पक्ष रखा गया लेकिन जिम्मेदार अधिकारियों ने मंदाकिनी संरक्षण के अन्य मामलों पर लोकोपयोगी अदालत द्वारा उठाए गए सवालों पर चुप्पी साध रखी है।

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