बुंदेलखंड में देशी गाय सड़कों की शोभा, गौशाला बनी लूट का अड्डा-

चार बुंदेली व्यक्ति पर औसत एक देशी गाय का आंकड़ा।
– बाँदा में गौशाला पर लाखों खर्च वहीं मण्डल में 59 करोड़ रुपया हजम हो गया। 

बांदा। यूपी बुंदेलखंड की पट्टी में गौवंश से चार गुना ज्यादा आबादी वाली बुंदेलखंडी गौमाता दुर्दिन का शिकार हैं। बुंदेली गायों के प्रति ज्यादा बेपरवाह हैं।

विभागीय आंकड़ो पर गौर करें तो यहां चार बुंदेलियों पर एक गौवंश का औसत है लेकिन पूरे यूपी बुंदेलखंड में अन्ना प्रथा चरम शीर्ष पर व्याप्त है। बड़ी बात यह हैं कि राजनीतिक व सामाजिक परिदृश्य में यहां गाय को मां के नाम से पुकारा जाता है।

गृहस्थ जीवन व धार्मिक कार्यों में गाय पूज्यनीय हैं परन्तु इस गौमाता को ही अन्ना / आवारा पशु की शक्ल में सड़कों पर बेबस घूमते देखा जा रहा है। परिवहन के चलते यह सड़के गायों के कत्लखानों में तब्दील है। 
उत्तरप्रदेश की तुलना में यूपी बुंदेलखंड में मात्र 12 फीसदी ही गौवंश हैं। वहीं मध्यप्रदेश बुंदेलखंड का सूरतेहाल भी खास अच्छा नहीं हैं। बतलाते चले कि पिछली पशु गणना के मुताबिक  उत्तर प्रदेश में गौवंशीय पशुओं की संख्या 1,95,57,067 है।

जबकि बुंदेलखंड के सातों जिलों बांदा, चित्रकूट, हमीरपुर, महोबा, जालौन, झांसी और ललितपुर में 23,50,882 गौवंश हैं। यह 12.2 फीसदी हैं। यहां ग्रामपंचायत व तहसील स्तर पर गौशालाओं के स्थाई व अस्थाई पशु आश्रय केंद्र सरकार के सहयोग से खुले है।

करोड़ों खर्च होने के बावजूद बुंदेलखंड के सात जनपदों में देशी गौवंश मार्मिक और दुखद तस्वीरों के साथ रोजमर्रा की जिंदगी में सामने आ रही हैं। गायों की ग्राउंड सच्चाई कुत्तों से बद्दतर हो चुकी हैं। यह अलग बात है गाय मोक्ष के साथ कन्यादान का शुभ पशुधन हैं।

कहते हैं जहां गाय का निवास होता हैं वहां प्रेतात्मा व अशुद्ध वातावरण नहीं होता हैं। देशी गायों का गौमूत्र पवित्रता के साथ आयुर्वेद औषधीय तरल पदार्थ हैं। वहीं गाय का गोबर जैविक खेती के लिए रीढ़ की हड्डी हैं।

गाय के गोबर से बने उपले व कंडे ग्रामीण जीवनशैली में ईंधन का बड़ा स्रोत रहा हैं। यूपी बुंदेलखंड में सबसे ज्यादा 4,83,033 गौवंश ललितपुर जिले में हैं।

धर्मनगरी चित्रकूट जनपद में गौवंशों की संख्या 4,21,332 है। वहीं दूसरी तरफ बुंदेलखंड की जनसंख्या 96,81,552 (वर्ष 2011 की जनगणना के मुताबिक) है। मौजूदा समय में आबादी का आंकड़ा एक करोड़ से भी ज्यादा हो गया है।
बुंदेलखंड में प्राचीन समय से ही गौवंश पालने की प्रथा रही है। खासकर ग्रामीण इलाकों में शायद ही कोई घर ऐसा हो जहां गाय-भैंस न हों लेकिन पिछले कुछ दशकों से इस परंपरा में बड़ा बदलाव आया है। लोग आजीवका व दुग्ध उत्पादन में भैंस-बकरियों पर ज्यादा आकर्षित हैं। बुंदेलखंडी गौवंश को घाटे का सौदा मान बैठे हैं।
हालांकि, इसके पीछे खेती की दुर्दशा और अक्सर आ रहीं दैवी आपदाएं भी कारण हैं। इन परिस्थितियों का सबसे ज्यादा खामियाजा गायों को भुगतना पड़ रहा है। उल्लेखनीय हैं बुंदेलखंड में भैंस और बकरी की स्थिति गायों- बैल की बनिस्बत सही है।

किसानों व शहरी लोगों ने गायों को निराश्रित व लाचार छोड़ दिया है क्योंकि गाय से दूध व बैल से खेती की उपयोगिता बन्द हो रही हैं। यहां भौतिक स्वार्थ ने गौवंश को हासिये पर खड़ा कर दिया है यह अति भयावह सूरत हैं जो इस देशी नस्ल पर खतरा है।

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