ज्ञानी व्यक्ति
जफर सादिक एक महान संत थे। एक बार विमर्श में यह प्रश्न उठा कि अक्लमंद की सही पहचान क्या है? किसी ने कहा— जो सोच-समझ कर बोले वह अक्लमंद है। इस पर संत सादिक बोले, ‘अपनी समझ के अनुसार तो हर व्यक्ति सोच-समझ कर ही बोलना चाहता है, मगर ऐसा हमेशा नहीं होता।
तभी उनमें से एक बोला, ‘जो नेकी और बदी में फर्क कर सके, वही अक्लमंद है।’ उसकी इस बात पर संत सादिक बोले, ‘नेकी और बदी का फर्क इंसान ही नहीं, जानवर तक समझते हैं। तभी तो जो उनकी सेवा करते हैं, वे उन्हें न काटते हैं और न ही नुकसान पहुंचाते हैं।
’ इस पर एक व्यक्ति बोला, ‘हुजूर, अब आप ही अक्लमंद व्यक्ति की पहचान बताइए।’ संत मुस्कराते हुए बोले, ‘अक्लमंद वह है जो दो अच्छी बातों में यह जान सके कि ज्यादा अच्छी बात कौन-सी है। और दो बुरी बातों में यह जान सके कि ज्यादा बुरी बात कौन-सी है।
अच्छी व बुरी बातों में पहचान करने के बाद यदि उसे अच्छी बात बोलनी हो तो वह बात बोले जो ज्यादा अच्छी हो और यदि बुरी बात बोलने की लाचारी पैदा हो जाए तो वह बोले जो कम बुरी हो।
यह बात सुनने में बेशक मामूली लग रही है, पर यदि इंसान इस राह पर चले तो वह न सिर्फ अक्लमंद कहलाएगा बल्कि बड़ी से बड़ी मुसीबत टालने में भी कामयाब हो जाएगा।’