प्रवीण इतिहास रचने की कगार पर

महाराष्ट्र के सातारा जिले के प्रवीण जाधव के पास बचपन में दो ही रास्ते थे या तो वह अपने पिता की तरह दिहाड़ी मजदूरी करते या फिर जिंदगी बेहतर करने के लिए ट्रैक पर सरपट दौड़ जाते। प्रवीण ने खुद भी कभी सपने में नहीं सोचा था कि ओलंपिक में तीरंदाजी जैसे खेल में वह भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे।

सातारा के सराडे गांव के इस लड़के का सफर संघर्षों से भरा रहा है। वह अपने पिता के साथ मजदूरी पर जाने भी लगे थे, लेकिन फिर खेलों ने जाधव परिवार की जिंदगी बदल दी। परिवार चलाने के लिए उनके पिता ने कहा कि स्कूल छोड़कर उन्हें मजदूरी करनी होगी।

उस समय वह सातवीं कक्षा में थे। जाधव ने कहा, ‘हमारी हालत बहुत खराब थी। मेरा परिवार पहले ही कह चुका था कि सातवीं कक्षा में ही स्कूल छोड़ना होगा ताकि पिता के साथ मजदूरी कर सकूं।’ एक दिन जाधव के स्कूल के खेल प्रशिक्षक विकास भुजबल ने उनमें प्रतिभा देखी और एथलेटिक्स में भाग लेने को कहा।

जाधव ने कहा, ‘विकास सर ने मुझे दौड़ना शुरू करने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि इससे जीवन बदलेगा और दिहाड़ी मजदूरी नहीं करनी पड़ेगी। मैंने 400 से 800 मीटर दौड़ना शुरू किया।’ अहमदनगर के क्रीडा प्रबोधिनी हॉस्टल में वह तीरंदाज बने जब एक अभ्यास के दौरान उन्होंने दस मीटर की दूरी से सभी दस गेंद रिंग के भीतर डाल दी। उसके बाद से उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा और परिवार के हालात भी सुधर गए।

Back to top button

Adblock Detected

Please consider supporting us by disabling your ad blocker