युवा सोच

चक्रवर्ती राजगोपालाचारी 82 वर्ष की आयु में वे भी बेहद सक्रिय थे। वे नित्य प्रातः समय पर उठते, आसन-प्राणायाम करते और फिर लिखने-पढ़ने बैठ जाते। एक दिन उनके पास दो बुजुर्ग आए। उनमें से एक बुजुर्ग व्यक्ति बोले, ‘राजाजी, आप को थकान महसूस नहीं होती क्या? मुझे देखो मैं तो अभी पैंसठ साल का हुआ हूं लेकिन अब शरीर साथ नहीं देता, थकान महसूस होती है।

’ दूसरा बुजुर्ग बोला, ‘मैं भी इस बात से सहमत हूं।’ उनकी बातें सुनकर राजाजी मुस्कराते हुए बोले, ‘आप लोगों में और मुझमें यही अंतर है कि आप स्वयं को बूढ़ा मानने लगे हैं, जबकि मैं अभी भी स्वयं को ऊर्जा और जोश से भरपूर युवक मानता हूं ।’ इस पर पहला बुजुर्ग बोला, ‘अच्छा, फिर आप ही बताइए कि हम बूढ़े कब होते हैं?’

राजाजी बोले, ‘आप बूढ़े तब होते हैं, जब आप जीवन में दिलचस्पी खो देते हैं, सपने देखना छोड़ देते हैं। जब तक व्यक्ति का मस्तिष्क नए विचारों और रुचियों के लिए खुला होता है, तब तक वह युवा ओर स्फूर्तिवान बना रहता है।’ दूसरा बुजुर्ग बोला, ‘तुम सही कह रहे हो। अक्सर बढ़ती आयु के कारण हम यह भूल जाते हैं कि आयु हमारी एक कीमती संपत्ति है।

इस कीमती संपत्ति के द्वारा हमें अपने आगे के जीवन को न सिर्फ सुंदर बनाना चाहिए बल्कि विश्व को अपने अनुभवों और रुचि के अनुरूप महान कलाकृतियां व वस्तुएं भी देनी चाहिए।’

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