प्रेरक फर्ज

हल्दीघाटी के ऐतिहासिक युद्ध के बाद महाराणा प्रताप परिवार सहित जंगलों में विचरण करते हुए अपनी सेना को संगठित करते रहे। एक दिन जब उन्होंने अपने बेटे अमर सिंह की भूख शांत करने के लिए घास की रोटी बनायी तो उसे भी जंगली बिल्ली ले भागी।

इससे विचलित होकर महाराणा प्रताप का स्वाभिमान डगमगाने लगा। उनके हौसले कमजोर पड़ने लगे। ऐसी अफवाह फैल गई कि महाराणा प्रताप की विवशता ने अकबर की अधीनता स्वीकार कर ली।

तभी बीकानेर के कवि पृथ्वीराज राठौड़ ने महाराणा को पत्र लिखकर उनके सुप्त स्वाभिमान को पुन: जगा दिया। उन्होंने पत्र में लिखा, ‘हमने सुना है दिलेर, बहादुर और जांबाज शेर अब दासता की जिंदगी बसर करेगा, चमकता-दमकता सूर्य अब खौफ और डर के बादलों की ओट में छुपा रहेगा, अब चातक धरती का पानी पिएगा।

इस बलिदानी धरा की सौगंध, हमने सुना है कि राजपूती विधवा हो जाएगी और दुश्मनों का संहार करने वाली तलवार म्यान में छिपी रहेगी। यह सुन कर मेरा हृदय कांप उठता है। आप ही बताए कि यह बात कहां तक सही है?’ पृथ्वीराज राठौड़ का पत्र पढ़ते ही महाराणा प्रताप की आंखें क्रोध से लाल हो उठी। फिर महाराणा प्रताप को मरते दम तक अकबर अधीन करने में असफल ही रहा।

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