कोरोना की उत्पत्ति
पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को चौपट करके व्यापक मानवीय क्षति पहंुचानेे वाले कोरोना वायरस की उत्पत्ति को लेकर पूरी दुनिया में मंथन होता रहा है। दुनिया में शक की सूई पहले से चीन की तरफ रही है क्योंकि वह जितनी तेजी से इस संकट से उबरा और अप्रत्याशित आर्थिक तरक्की इस दौर में की, उसने कई सवालों को जन्म दिया।
उसने इस संकट से बचाव के उपकरणों, दवा व वैक्सीन की जैसी तैयारी कर रखी थी, उसने भी संदेह पैदा किया। यहां तक कि कूटनीतिक साम्राज्यवाद के साथ अभूतपूर्व जीडीपी में उछाल तथा अंतरिक्ष में जैसे कामयाबी के झंडे उसने उस दौर में गाड़े, जब पूरी दुनिया में मानवता संकट से कराह रही थी।
हालांकि, पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप शुरू से इसे चीनी वायरस बता कर वुहान लैब की देन बताते रहे, लेकिन उन्हें गंभीरता से नहीं लिया गया। अब नये अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने अमेरिकी खुफिया एजेंसियों को 90 दिन में कोरोना वायरस की वुहान थ्योरी से पर्दा उठाने का आदेश दिया है।
हालांकि, इससे पहले विश्व स्वास्थ्य संगठन के विशेषज्ञों की टीम ने वुहान का दौरा करके वायरस की लैब थ्योरी को जितनी जल्दी खारिज किया, उसने भी कई सवालों को जन्म दिया।
पिछले दिनों आस्ट्रेलिया के मीडिया में इस आशय की खबर प्रकाशित हुई थी कि चीन जैविक युद्ध के रूप मे कोरोना वायरस को विकसित करने का कार्यक्रम 2015 से चला रहा था, जिसकी सोच थी कि आने वाले समय में जैविक युद्ध कारगर होंगे।
यह वायरस किसी भी देश के स्वास्थ्य ढांचे को धवस्त करने में कारगर होगा। बहरहाल, अब पूरी दुनिया में कोरोना वायरस की उत्पत्ति का पता लगाने के लिये गंभीर जांच की मांग उठ रही है।
एक नये सनसनीखेज दावे में कहा गया है कि इस वायरस को चीन के वैज्ञानिकों ने वुहान लैब में तैयार किया था। इसके बाद वायरस को रिवर्स इंजीनियरिंग वर्जन से छिपाने की कोशिश हुई थी, ताकि दुनिया को लगे कि यह कोरोना वायरस चमगादड़ से प्राकृतिक रूप से विकसित हुआ है।
दरअसल, ब्रिटेन के प्रोफेसर एंगस डल्गालिश और नार्वे के विज्ञानी डॉ. बिर्गर सोरेनसेन ने एक अध्ययन में दावा किया कि इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि कोरोना वायरस सार्स-कोव-2 प्राकृतिक रूप से पैदा हुआ है।
इसे एक विशेष प्रोजेक्ट पर काम करने वाले चीनी विज्ञानियों ने तैयार किया है, जिसमें प्राकृतिक वायरस में फेरबदल करके उसको अधिक संक्रामक बनाने का काम लैब में किया गया है।
अध्ययन में दावा किया गया कि गुफाओं में रहने वाले चमगादड़ों से प्राकृतिक कोरोना वायरस निकाला गया और उसे स्पाइक से चिपकाकर घातक व तेजी से फैलने वाला बनाया गया है।
शोधकर्ताओं का दावा है कि उन्होंने कोविड-19 के सैंपल में एक ‘यूनिक फिंगरप्रिंट’ पाया है, जिसके बाबत कहा गया कि यह लैब में वायरस के साथ छेड़छाड़ से ही संभव था। उनका कहना है कि उनके पास वायरस पर रेट्रो-इंजीनियरिंग के सुबूत थे, लेकिन उनकी रिपोर्ट को प्रमुख जर्नलों ने अनदेखा किया। आरोप है कि चीन ने इससे जुड़ा डाटा नष्ट किया है।
वहीं अमेरिका के पूर्व विदेश मंत्री माइक पोम्पियो का भी कहना है कि चीन की वुहान लैब में शोध के साथ सैन्य गतिविधियां भी होती थीं, जिससे पीपुल्स लिबरेशन आर्मी के लोग भी जुड़े रहे हैं।
अमेरिका के राष्ट्रपति द्वारा खुफिया एजेंसियों को तीन माह में जांच के आदेश के साथ ही स्वास्थ्य मंत्री ने वर्ल्ड हेल्थ असेंबली में चीन का नाम लिये बगैर डब्ल्यूएचओ से कहा कि कोरोना वायरस कहां से फैला, इस बाबत जांच का अगला चरण पारदर्शी होना चाहिए।
दरअसल, विश्व स्वास्थ्य संगठन भी चीन के सुर में कहता रहा है कि वायरस वुहान के सी-फूड मार्केट में पाया गया था। यानी वायरस जानवरों से इंसान में फैला है।
वहीं वॉल स्ट्रीट जर्नल ने अमेरिकी खुफिया रिपोर्ट के हवाले से छापा है कि वर्ष 2019 नवंबर में वुहान लैब के तीन सदस्यों को कोविड जैसे लक्षणों वाली बीमारी की वजह से अस्पताल जाना पड़ा था।