स्मार्टफोन और गैजेट्स पर हर दिन बढ़ रही है लोगों की निर्भरता

आज के दौर में स्मार्टफोन और गैजेट्स पर लोगों की निर्भरता हर दिन बढ़ रही है। एक नए अध्ययन में गैजेट्स के उपयोग और प्रभावों को लेकर शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि स्मार्टफोन ‘हमारे लिए घर बन रहे हैं’। यूसीएल के मानव वैज्ञानिकों ने एक वर्ष के दौरान आयरलैंड से लेकर इटली तक दुनियाभर के बुजुर्ग वयस्कों में स्मार्टफोन के उपयोग का अध्ययन किया।

इस महत्वपूर्ण अध्ययन में पाया गया है कि लोग खाली समय बिताने के एक साधन के रूप में देखने के बजाय स्मार्टफोन को अपने घर की तरह मानते हैं। एक ऐसी जगह जहां वे रहते हैं। अध्ययन के प्रमुख लेखक प्रोफेसर डैनियल मिलर का कहना है कि स्मार्टफोन का उपयोग सभी आयु समूहों के लोगों के बीच आमने-सामने बातचीत को खत्म करने के मामले में अग्रणी था।

ऐसा इसलिए, क्योंकि लोग घर जाते हैं और एक डिवाइस में व्यस्त हो जाते हैं। खाने के वक्त, मीटिंग के वक्त और अन्य साझा गतिविधियों के वक्त भी वह इन्हीं में व्यस्त रहते हैं। व्यक्ति अपने स्मार्टफोन में इतना व्यस्त होते हैं कि वह उस जगह पर होते हुए भी नहीं होता है।

शोधकर्ताओं की टीम का कहना है कि इंसानों के इस व्यवहार का कोई विशिष्ट कारण तो नहीं है, मगर संदेह है कि इनके पीछे व्हॉट्सऐप, वी’चैट जैसे अन्य तमाम मैसेजिंग ऐप कारण हो सकते हैं। इनके जरिए लोग दूर रहकर भी परिवार और दोस्तों से जुड़े रहते हैं।

अध्ययन लेखक इस व्यापक अध्ययन के लिए दुनियाभर के नौ देशों में स्मार्टफोन के उपयोग और उनके प्रभावों की खोज कर रहे हैं। इस अध्यनय में 11 शोधकर्ताओं को शामिल किया गया।

प्रत्येक ने एजिंग, स्मार्टफोन के उपयोग और स्वास्थ्य के लिए स्मार्टफोन की क्षमता का अध्ययन करने में 16 महीने खर्च किए। मिलर के मुताबिकर स्मार्टफोन के उपयोगकर्ता व्यक्तिगत ऐप्स के बजाय टास्क पर केंद्रित होते हैं। वे बस अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए विभिन्न ऐप्स के को थोड़ा-थोड़ा जोड़ते हैं।

द ग्लोबल स्मार्टफोन नाम की रिपोर्ट में मिलर ने कहा है, ‘स्वास्थ्य का उदाहरण लेते हुए हम देख सकते हैं कि स्वास्थ्य के लिए सामान्य ऐप जैसे कि व्हॉट्सऐप और गूगल की तुलना में यूजर की सेहत के लिए कम पॉपुलर ऐप्स आमतौर पर सामान्य से कम महत्वपूर्ण हैं’। टीम ने खुलासा किया है कि लाइन, वीचैट, व्हॉट्सऐप जैसे तमाम ऐप स्मार्टफोन का मुख्य केंद्र होते हैं।

वास्तव में यह ऐप इतने प्रभावी हो सकते हैं कि उपयोगकर्ता इन प्लेटफार्मों तक पहुंच बनाने के लिए अनिवार्य रूप से स्मार्टफोन देखते हैं। हालांकि टीम ने यह भी देखा कि यह ऐप परिवार के रिश्तों को बदल रहे हैं। समुदाय के काम में मदद कर रहे हैं और सामाजिकता को और अधिक बेहतर बना रहे हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि इन ऐप्स पर अपने बुजुर्ग अभिभावकों की देखरेख के लिए बहन-भाई के साथ आते हैं, अपनी और अपने बच्चों की तस्वीरें साझा करते हैं और परिवार को जुड़े रहने का अहसास कराते हैं। इससे दूर रहकर भी परवाह का भाव जुड़ा रहता है।

स्मार्टफोन बेशक दूर बैठे लोगों से जुड़े रहने का अहसास करा रही है, लेकिन घर में साथ रहने वाले सदस्यों, करीब मित्रों और पास रहने वालों के साथ संबंधों की ‘मृत्यु’ का कारण भी बन रहे हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि हालांकि यह डिवाइस हमारे लिए एक ऐसा घर बन रही हैं, जिन्हें हम अपनी जेब में रखकर आराम से घूम-फिर रहे हैं।

यह सामने मौजूद पारिवारिक सदस्यों और लोगों को नजरअंदाज करने का कारण भी बन रहे हैं। इस व्यवहार, निराशा और हताशा का कारण बन रहा है, जिसे हम ‘निकटता की मृत्यु’ कह सकते हैं। हम इस खतरे के साथ जीना सीख रहे हैं कि जब हम शारीरिक रूप से एक साथ होते हैं तब भी हम सामाजिक, भावनात्मक या पेशेवर रूप से अकेले हो सकते हैं।

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