मध्य मार्ग से सिद्धि

महात्मा बुद्ध ज्ञान प्राप्ति के लिए घर-बार छोड़कर तपस्या कर रहे थे। तपस्या में उन्हें छह साल लगे, परंतु उनकी तपस्या सफल नहीं हुई। एक दिन वह वृक्ष के नीचे समाधि में बैठने की कोशिश में थे, परंतु उनका चित्त उद्विग्न था। तभी कुछ महिलाएं नगर से लौट रही थीं।

वे समवेत स्वर में गीत गा रही थीं। उस गीत के बोल थे ‘वीणा के तार ढीले मत छोड़ो, ढीला छोड़ने से उनका स्वर सुरीला नहीं निकलेगा, परंतु तार इतने अधिक कसो भी नहीं कि टूट जाएं।’ यह बात सिद्धार्थ को जंच गई।

उन्हें प्रतीत हुआ कि वीणा के तारों के लिए जो बात ठीक है, वह शरीर के लिए भी ठीक होगी। न तो अधिक आहार ठीक है और न ही बहुत न्यून। नियमित मध्यम आहार-विहार से ही योग सिद्ध हो सकता है।

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