प्रेरणादायक पहल
13 मई, 1926 को महात्मा गांधी ने अपने भाषण में कहा—‘ज्यादा बुरा क्या है, मरे हुए जानवरों का मांस खाना या मन में गंदे विचार लाना? हम रोजाना मन में गंदे विचार लाते हैं उन्हें अपने मन में जगह देते हैं और उनका पोषण भी करते हैं।
अगर हमें किसी चीज का त्याग करना है तो इन्हीं का त्याग करें क्योंकि यही असली अस्पृश्य हैं, जिनसे नफरत करना चाहिए। हमारा कर्तव्य है कि जिन भाइयों को हम अस्पृश्य समझते हैं उन्हें गले लगाकर, हमने अतीत में जो उनके साथ अन्याय किया है, उनके साथ प्रायश्चित करें।
’ गांधीजी का यह भाषण वहां मौजूद लोगों को प्रायश्चित करने के लिए प्रेरणा का स्रोत बन गया। उन्हें जिंदगी में पहली बार लगा वाकई में नफरत करने वाली वस्तु कोई व्यक्ति या जाति नहीं, बल्कि हमारे अंदर मौजूद वह गंदगी है, जिसकी वजह से हमारे अंदर गंदे-गंदे विचार, गंदी आदतें और गंदे कार्य करने के लिए हम उत्सुक होते हैं।
त्याग से बड़ी दुनिया में कोई चीज नहीं। लेकिन यह समझ होनी चाहिए कि क्या त्यागना चाहिए और क्या अपनाना चाहिए। गांधीजी का यह भाषण इनसानियत के लिए आगे आने की प्रेरणा के रूप में वरदान साबित हुआ। गांधीजी का यह भाषण दुनिया के इतिहास में अस्पृश्यता को खत्म करने के लिए सदा के लिए अमर हो गया।