सत्य का पालन

इंग्लैंड की महारानी विक्टोरिया बचपन से ही अपने आदर्शों का पालन करती थीं। इसमें वह कभी पीछे नहीं हटी और एक लोकप्रिय महारानी बनी। वे जब छोटी थी, एक दिन उनकी अध्यापिका घर पर पढ़ाने आयी तो बालिका विक्टोरिया का मन पढ़ने का नहीं था। इसलिए उसने पढ़ने से मना कर दिया।

अध्यापिका ने उसे समझाया कि थोड़ा पढ़ लो, मगर वह न मानी और चिढ़कर बोली, ‘नहीं, आज मैं बिल्कुल नहीं पढ़ूंगी।’ साथ वाले कमरे से बच्ची विक्टोरिया की मां लुईसा ने जब ये शब्द सुने तो वे आयी और विक्टोरिया को डांटकर पूछा, ‘क्यों नहीं पढ़ेगी?’ अध्यापिका ने मां को रोक दिया और कहा, ‘आप इसे डांटे नहीं।

हो सकता है इसने मेरी बात न सुनी हो।’ बालिका विक्टोरिया बोल उठी, ‘आप ऐसा क्यों कहती हैं? आपने दो बार पढ़ने को कहा, किन्तु मैंने दोनों बार पढ़ने से मना कर दिया।’ मां लुईसा पुत्री की सच्चाई से प्रसन्न हो गयीं।

उसे हृदय से लगाकर बोली, ‘तू बेशक आज न पढ़। लेकिन आजीवन सत्य बोलने की आदत को न छोड़ना।’ बालिका विक्टोरिया पर मां की बात का प्रभाव पड़ा और उन्होंने जीवन भर सत्य बोलने का पालन किया।

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