चमोली के मलारी में ग्लेशियर नहीं टूटा बल्कि आया था एवलांच ?

देहरादून : उत्तराखंड के चमोली जिले में भारत-चीन सीमा के पास मलारी में ग्लेशियर टूटने की घटना को वाडिया भू विज्ञान संस्थान ने प्रथम दृष्टया गलत बताया है। वाडिया के निदेशक डा.कलाचंद सांई का कहना है कि उन्होंने ग्लेशियर कहे जा रहे हादसे को लेकर सामने आए जो फुटेज देखे हैं, उसके आधार पर ही ये साफ है कि ये कोई ग्लेशियर टूटना नहीं है, ये सिर्फ एक एवलांच हो सकता है। जो बर्फ की अधिकता के चलते हुआ है। शुक्रवार की दोपहर मलारी घाटी के पास सुमना इलाके हुए इस हादसे पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि बीते कुछ रोज से उस इलाके में काफी बर्फबारी हुई है। इसी के चलते पहाड़ की ढलान से काफी सारी बर्फ सड़क में एवलांच के चलते आकर गिरी है। वहां पर कोई ग्लेशियर नहीं है। हालांकि अभी कोविड वजहों से इसकी मौके पर जाकर स्टडी नहीं कर पा रहे हैं।

वहीं सीएम तीरथ सिंह रावत व मंत्री डा.धन सिंह रावत ने भी हवाई दौरा किया है। भारतीय सेना ने मौके पर बचाव अभियान चलाया है। हादसे में अभी तक 384 लोगों को बचाने की बात सामने आई है। आठ शव भी बाहर निकाले गए हैं जबकि आठ लोग गंभीर घायल हैं। कुछ लापता भी बताए गए हैं। सड़क के ऊपर एवलांच आने से भूपकुंड से सुमना के बीच सड़क पर आई स्लाइड को साफ करने में जोशीमठ से बीआरटीएफ की टीमें लगी हुई है। करीब चार से पांच स्थानों पर सड़क टूटी हुई है। वहीं घटना के बाद आर्मी ने हैली द्बारा बीआरओ के साल  घायल मजदूरों को घटना स्थल सुमना-2 से  रेस्क्यू कर आर्मी हास्पिटल जोशीमठ में भर्ती कर दिया है। घायलों की पहचान रायबोंडाला उम्र 30 वर्ष, अनुज कुमार उम्र 18 वर्ष, फिलिप बान्ड उम्र 21 वर्ष, कल्याण उम्र 40 वर्ष, मंगलदास उम्र 33 वर्ष, संजय उम्र 25 वर्ष और महिन्द्र मुंडा उम्र 41 वर्ष शामिल हैं।

वाडिया के निदेशक डा. सांई के अनुसार ग्लेशियर रैणी तपोवन हादसे में टूटा था, उस समय ग्लेशियर का बड़ा हिस्सा रॉकमास के साथ टूटते हुए निचली घाटी में तेज बहाव के साथ गया था। जिससे बड़े स्तर पर ऋषिगंगा, तपोवन के पावर प्रोजेक्ट को नुकसान पहुंचा था। डा.समीर तिवारी के नेतृत्व में वाडिया के वैज्ञानिकों ने रैणी ऋषिगंगा हादसे की जो रिपोर्ट संस्थान को सौंपी है उसमें ग्लेशियर टूटने की पुष्टि हो चुकी है। डा.समीर के अनुसार, 5400 मीटर की ऊचांई पर ग्लेशियर व रॉकमास तेजी से 32 से 3300 मीटर की ऊंचाई पर गिरा। मलबे से पहले रौंथी नदी को ब्लॉक किया फिर ऋषिगंगा में झील बनाई। जिसके टूटने पर मलबे ने ऋषिगंगा व तपोवन पावर प्रोजेक्ट में कहर बरपाया।

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