मदद के अहसास

घटना लगभग सौ साल पहले परमहंस योगानंद के संत-प्रकृति माता-पिता ज्ञान प्रभा घोष व भगवती चरण घोष से जुड़ी है। एक बार घोष दंपति के घर एक असहाय महिला दस रुपये की आर्थिक मदद मांगने आई।

पत्नी ने पति से दस रुपये की मदद करने को कहा। पति ने कहा-दस रुपये क्यों, क्या एक रुपया काफी नहीं है। साथ ही तर्क भी जोड़ दिया कि मेरा प्रारम्भिक जीवन बहुत अभावग्रस्त था। अपने विद्यार्थी जीवन के दौरान अत्यधिक आर्थिक तंगी के चलते मैंने एक धनी व्यक्ति से हर महीने एक रुपये की सहायता के लिए प्रार्थना की। समर्थ होते हुए भी उसने मात्र एक रुपया देने से मना कर दिया।

यह सुनकर ज्ञान प्रभा ने कहा कि आज जब आप जीवन में पूर्णतया सफल और समर्थ हैं, उच्च वेतन पाते हैं, फिर भी उस एक रुपये के अभाव की स्मृति की असहनीय पीड़ा से क्यों चिपके हुए हैं। क्या आप भी चाहते हैं कि वह महिला भी अपनी निर्धनता को इसी प्रकार याद रखे कि किसी समर्थ व्यक्ति ने उसकी असहाय स्थिति में उसे दस रुपये देने से मना कर दिया था।

भगवती चरण घोष के पास कोई तर्क नहीं था। दस रुपये अपनी पत्नी को देते हुए उन्होंने मुस्कुरा कर कहा-तुम सही हो, लो ये दस रुपये, मेरे आशीर्वाद के साथ उस महिला को दे दो।

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