सादगी की प्रतिमूर्ति
सन् 2001 में प्रख्यात शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां को भारत रत्न मिला। खां साहब शहनाई वादन के शिखर पर थे, लेकिन रहते बड़ी सादगी से थे। भारत रत्न मिलने के कुछ ही दिन बाद बिस्मिल्लाह खां की एक शिष्या ने उनसे कहा, ‘बाबा आपकी इतनी इज्जत, शोहरत है, आपको भारत-रत्न से नवाजा जा चुका है।
आप अपने कपड़ों पर पर बिल्कुल भी ध्यान नहीं देते। आप पैबंद लगी ये फटी लुंगी पहनते हैं। यह अच्छा नहीं लगता।’ खां साहब ने अपनी शिष्या से कहा-’पगली भारत रत्न तो हमें शहनाई पर मिला है, लुंगीया पर थोड़े ही मिला है ।
मालिक से यही दुआ है-फटा सुर न बख्शे। लुंगीया का क्या है, आज फटी है तो कल सिल भी जाएगी। फिर भी तुम कहती हो तो आइंदा से फटी लुंगी नही पहनेंगे।’ ऐसी सादगी की प्रतिमूर्ति थे उस्ताद बिस्मिल्लाह खां।