पाकिस्तान में न्याय देने वालों ने ही कर दिया घपला , प्राइवेट जमीन पर बना डालीं अदालतें

नई दिल्ली: लोगों को उम्मीद होती है कि भले ही क्यों न उनके साथ कितना भी गलत हो जाए, लेकिन आखिरकार कोर्ट से उन्हें न्याय मिलकर ही रहेगा। लेकिन क्या होगा जब खुद कोर्ट ही गलत तरीके से काम करने लगे और फिर पकड़ा भी जाए। दरअसल, यह मामला पाकिस्तान का है, जहां पर पांच अदालतें प्राइवेट जमीन पर अवैध रूप से बनाई गईं मिली हैं। इस्लामाबाद ज्यूडिशियरी की पांच कोर्ट के बारे में हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट को यह जानकारी दी है।

इस्लामाबाद हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार ने सुप्रीम कोर्ट को कोर्ट्स के बारे में लिखित जानकारी दी है। शीर्ष अदालत ने हाई कोर्ट से प्ले ग्राउंड पर कब्जे समेत अवैध रूप से बनाई गई कोर्ट्स के बारे में और अधिक जानकारी मांगी थी। इसके साथ ही, इस्लामाबाद हाई कोर्ट ने कोर्ट के अवैध निर्माण को लेकर ऑडिटर जनरल ऑफ पाकिस्तान से फॉरेंसिक ऑडिट कराए जाने का भी आदेश दिया है। इस्लामाबाद हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार ने कोर्ट से बताया है कि फुटबॉल मैदान में कोई भी कोर्ट का निर्माण नहीं हुआ है। हालांकि, सेशन और डिस्ट्रिक्ट जजों के पत्रों का हवाला देते हुए रजिस्ट्रार ने कहा है कि हालांकि, F-8 मर्कज की कमर्शियल जमीन पर कुछ अवैध रूप से जरूर कब्जा किया गया है। लेटर में आगे कहा गया है कि यह सामने आया है कि कुछ कोर्ट्स जनता की प्राइवेट जमीन पर बनाई गई हैं।

मामला सामने आने के बाद कैपिटल डेवलपमेंट अथॉरिटी (सीडीए) को कोर्ट द्वारा अवैध निर्माण के खिलाफ कदम उठाए जाने के आदेश दिए गए हैं। रजिस्ट्रार द्वारा सीडीए के चेयरमैन को भेजे गए एक पत्र में कहा गया है कि कोर्ट बनाने के लिए जमीन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी एग्जीक्यूटिव की है। लेटर के अनुसार, आईएचसी के मुख्य न्यायाधीश अथार मिनल्लाह ने निर्देश दिया है कि अदालतों की स्थापना के लिए उपयुक्त इमारतें उपलब्ध कराने के लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं। हाई कोर्ट ने 16 फरवरी को सीडीए को निर्देश दिया था कि वह वकीलों से फुटबॉल ग्राउंड की जमीन को फिर से वापस ले और 23 मार्च तक खेल के मैदान को बहाल करे।

मामले में याचिकाकर्ता, इस्लामाबाद के निवासी ने तर्क दिया कि खेल के मैदान को अधिवक्ताओं और आसपास के व्यावसायिक भवनों के रहने वालों द्वारा अतिक्रमण किया गया था। वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील दायर की थी, जिसने 2 मार्च को याचिका खारिज कर दी थी।

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