सोशल मीडिया पर लगाम
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म व्हॉट्सएप द्वारा प्राइवेसी पॉलिसी में किये जा रहे मनमाने बदलाव के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने कंपनी को नोटिस भेजकर जवाब मांगा है। चीफ जस्टिस एस. ए. बोबड़े की अध्यक्षता वाली पीठ ने दो टूक शब्दों में कहा कि ये आरोप चिंताजनक हैं कि उपभोक्ताओं के डेटा दूसरी कंपनियों के साथ शेयर किये जा रहे हैं।
अदालत ने बल दिया कि व्यक्ति की निजता की रक्षा होनी चाहिए। साथ ही यह कि निजता नीति में बदलाव के चलते लोगों में आशंका बलवती हुई है कि निजी जानकारी साझा किये जाने से उनकी निजता का हनन होता है।
अदालत ने व्हॉट्सएप व फेसबुक के वकीलों को खरे-खरे शब्दों में कहा कि भले ही ये कंपनियां दो-तीन ट्रिलियन की हों, लेकिन आम आदमी को पैसे से ज्यादा अपनी निजता पसंद है, जिसकी रक्षा करना हमारा दायित्व है। मुख्य न्यायाधीश ने कंपनी की सहयोगी कंपनी द्वारा कारोबारी हितों के लिये डेटा शेयरिंग की विसंगतियों की ओर ध्यान खींचा।
दरअसल, विडंबना यह है कि भारत में अमेरिका व यूरोप की तरह सख्त डेटा प्रोटेक्शन कानून नहीं है, जिसका लाभ ये कंपनियां उठा रही हैं। हालांकि, कंपनी के भारतीय वकीलों की दलील थी कि यदि भारत में यूरोपीय देशों की तर्ज पर जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन्स अस्तित्व में आते हैं तो कंपनियां उनका पालन करेंगी।
वहीं कोर्ट में सरकार की भी दलील थी कि कंपनियां यूजर्स की जानकारियां शेयर नहीं कर सकतीं। दरअसल, व्हॉट्सएप द्वारा थोपे जाने वाली सख्त प्राइवेसी पॉलिसी के खिलाफ इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन की ओर से शीर्ष अदालत में याचिका दायर करके आरोप लगाया गया था कि कंपनियां निजी फायदे के लिये बड़े पैमाने पर यूजर का डेटा शेयर कर रही हैं जो आम उपभोक्ता के लिये बेहद चिंता की बात है। साथ ही संगठन ने कंपनी द्वारा फेसबुक से उपभोक्ता के डेटा शेयर पर रोक लगाने की भी मांग की थी।
एक अनुमान के अनुसार भारत में व्हॉट्सएप के चालीस करोड़ प्रयोक्ता हैं। भारत में बड़े उभरते बाजार और लचर साइबर कानूनों का फायदा उठाते हुए ये सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म नये कारोबार की संभावना तलाश रहे हैं।
कहने को तो ये अमेरिकी कंपनियां मुफ्त में अपनी सेवाएं उपलब्ध करा रही हैं, लेकिन अघोषित तौर पर यूजर को उत्पाद की तरह इस्तेमाल करना चाह रही हैं। कहा भी जाता है कि जब आप कोई सेवा मुफ्त में उपयोग करते हैं तो आपको एक उत्पाद के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। कमोबेश व्हॉट्सएप के मामले में भी ऐसा ही किया जा रहा है।
विडंबना यह है कि अमेरिका, ब्राजील और यूरोपीय संघ के देशों में सख्त साइबर कानून होने के कारण व्हॉट्सएप की निजता के मापदंड ऊंचे हैं। जबकि भारत जैसे विकासशील देशों में वह निजता के मापदंडों को कमतर कर रही है, जिसका देश में मुखर विरोध किया जा रहा है और यूजर सेवा के नये विकल्पों की तलाश कर रहे हैं। दरअसल, भारत में पर्सनल डेटा प्रोटेक्शन बिल लंबित है
। ऐसे में इसके कानून की शक्ल लेने से पहले व्हॉट्सएप अपनी नीति में बदलाव लाकर मौके का फायदा उठाना चाह रहा है। दरअसल, डेटा प्रोटेक्शन बिल में कई कड़े और प्रगतिशील प्रावधान हैं, जिससे लोगों की निजी जानकारी की सुरक्षा सुनिश्चित हो सकेगी। जिसमें नियमों के उल्लंघन पर मुआवजे और सजा का प्रावधान भी है।
ऐसे में बिल पास हो जाने की स्थिति में व्हॉट्सएप के इन प्रस्तावित बदलावों के अस्तित्व में आने पर नये कानून का नियंत्रण प्रभावी नहीं हो पायेगा। इसके लागू होने से पहले ही व्हॉट्सएप यूजर का निजी डेटा जमा करके उसे शेयर कर चुका होगा जो हमारी चिंता का विषय होना चाहिए। ऐसे में सरकार को कंपनी की मंशा पर अंकुश लगाने के लिये कारगर हस्तक्षेप करना चाहिए।
निस्संदेह बदलते वक्त के साथ साइबर व तकनीक से जुड़े कानूनों की समीक्षा करके इन्हें धारदार बनाया जाना चाहिए। हालांकि सुप्रीम कोर्ट पहले ही कह चुका है कि निजता का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। यही वजह है कि व्हॉट्सएप की नयी निजता पॉलिसी को खतरे की घंटी बताया जा रहा है।