आंदोलन का अंतरराष्ट्रीयकरण

किसान आंदोलन का अंतरराष्ट्रीयकरण हो चुका है। पूरी दुनिया की नजर अब इस पर आ चुकी है। इसके समर्थन करने वालों के खिलाफ होने वाले सरकारी दमन पर दुनिया की नजर रहेगी और दुनिया अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करेगी। आंदोलन तो अब निकट भविष्य में समाप्त होने वाला नहीं और कृषि कानूनों पर मोदी सरकार अपनी लड़ाई हार चुकी है। इसलिए बेहतर यही होगा कि सरकार फिर से नया कानून बनाने की घोषणा कर दे।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अभी भी अपनी जिद पर अड़े हुए हैं और कृषि कानूनों के पक्ष में लगातार बयानबाजी कर रहे हैंए लेकिन इस सवाल का उनके पास कोई जवाब नहीं है कि जब पूरा देश लॉकडाउन के कारण घरों में बंद थाए तो अध्यादेश के द्वारा इन कानूनों को बनाने की क्या जरूरत थी।

उनके पास इस सवाल का भी कोई जवाब नहीं है कि संसद में इस पर बहस कराए बिना इसे क्यों पारित कराया गया। उनके पास इस सवाल का जवाब भी नहीं है कि राज्यसभा में जब उनकी पार्टी अल्पमत में है और उनके राजग सहयोगी दलों में भी उन कानूनों को लेकर विरोध थाए तो फिर राज्यसभा में मत विभाजन क्यों नहीं कराया गया।

जाहिर हैए कृषि कानूनों पर मोदी सरकार की मंशा सही नहीं है। यह सच है कि कृषि क्षेत्र में नीतिगत सुधार होने ही चाहिएए लेकिन इन सुधारों का केन्द्र किसान होने चाहिए और देश की खाद्यान्न सुरक्षा के ध्यान में रखकर नये कानून बनाए जाने चाहिए।

लेकिन सरकार ने कानून बनाते समय न केवल किसानों की उपेक्षा कीए बल्कि अध्यादेश के द्वारा उस समय कानून बना डालाए जब किसान सहित देश के सारे लोग घरों में बंद थे। इससे ज्यादा अनैतिक और कुछ नहीं हो सकता था।

सरकार नियंत्रित मीडिया द्वाराए जिसे देश के लोग अब गोदी मीडिया के नाम से जानते हैंए अपने पक्ष में माहौल बनाती है। लोगों का ब्रेनवाश कर गलत को सही ठहराया जाता है। वही काम करने के लिए एक सोशल मीडिया पर एक मजबूत आईटी सेल भी है।

लेकिन इस बार सरकार गलत को सही ठहराने में विफल रही और किसान उसके झांसे में नहीं आए। इसका एक कारण यह है कि अब गोदी मीडिया पर वे विश्वास नहीं करते और उनको यह भी पता चल गया है कि हजारों या लाखों की संख्या में पेड साइबर कुली आईटी सेल का हिस्सा हैं और वे जो कहते हैंए उन पर भी विश्वास नहीं किया जा सकता।

जब किसान सरकार की बात को मानने से इंकार कर रहे थे और कानूनों की वापसी से कम पर वे अपने आंदोलन वापस लेने को तैयार नहीं थेए तो 26 जनवरी को लाल किले पर हुई एक अप्रिय और शर्मनाक घटना की आड़ में उसने सारे आंदोलनकारियों को दिल्ली की सीमा से खदेड़ने की योजना बनाई और गोदी मीडिया से एक झूठा प्रचार एक साथ कराया गया कि जहां वे लोग धरने पर बैठे हैंए वहां के स्थानीय लोग बलपूर्वक हटा रहे हैंए जबकि सच्चाई कुछ और थी।

सच्चाई मनदीन पूनिया नाम के एक स्वतंत्र पत्रकार ने दुनिया के सामने दिखाने का काम किया और वह सच्चाई यह थी कि वे स्थानीय लोग नहीं थेए बल्कि भाजपा के लोग थे जो पुलिस के संरक्षण में वहां गुंडागर्दी कर रहे थे। पूनिया द्वारा उस सच का खुलासा करने के बाद उसे ही गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया गया। यानी गोदी मीडिया झूठ फैलाए और उसके झूठ को झूठ साबित कोई करेए तो पुलिस उसे ही गिरफ्तार कर ले। यह सब देश में हो रहा था।

उसी समय रिहाना ने एक ट्वीट करते हुए विश्व समुदाय को लताड़ लगाई कि भारत में किसान आंदोलन पर ध्यान दो। फिर तो भारत में आईटी सेल ने उसके खिलाफ हमला बोल दिया।

फिर मियां खलीफा नाम की पॉर्न इंडस्ट्री में काम करने के लिए चर्चित एक महिला ने भी किसान आंदोलन के पक्ष में पोस्ट डाला। पर्यावरणविद ग्रेटा ने भी वही काम किया। ग्रेटा पर तो दिल्ली पुलिस ने मुकदमा भी कर दिया। हालांकि बाद में उसने कहा कि उसने कोई एफआईआर नहीं किया है।

क्या पता गोदी मीडिया के अति उत्साह के कारण ग्रेटा के खिलाफ दिल्ली पुलिस द्वारा मुकदमा किए जाने की खबर उभरी। यह सब हो ही रहा था कि अमेरिका की उपराष्ट्रपति कमला हेरिस की भांजी मीना हेरिस भी किसानों के समर्थन में ट्वीट करने लगीं। उन चारों महिलाओं के खिलाफ इधर भारत के सत्तातंत्र के द्वारा जो प्रतिक्रिया हुईए उसके कारण अब पूरा किसान आंदोलन का अंतरराष्ट्रीयकरण हो चुका है।

वे चारों महिलाएं अपनी निजी हैसियत से किसान आंदोलन के खिलाफ भारत सरकार के रुख की आलोचना कर रही थीए लेकिन आईटी सेल ने उसे भारत की संप्रभुता पर ही हमला बोल दिया।

उस हमले में लगा मंगेशकरए सचिन तेंदुलकरए अक्षय कुमार और विराट कोहली जैसे लोगों की सहायता ली जाने लगी। वह बहुत ही हास्यास्पद थाए क्योंकि व्यक्तिगत स्वतंत्रता के तहत हम भारतीय लेखक और पत्रकार भी अमेरिकाए रूसए चीनए ईरानए इराक पाकिस्तानए अरब और अन्य देशों की अंदरूनी घटनाओं पर खूब प्रतिक्रिया करते रहे हैं।

हमारी प्रतिक्रिया को उन देशों ने कभी भी अपनी संप्रभुता पर हमला नहीं माना। लेकिन सचिन जैसे लोगों की सहायता से मीडिया सेल एक और झूठ फैलाने की कोशिश कर रहा था कि वे चार महिलाएं भारत की संप्रभुता पर ही हमला कर रही हैं।

बाद में तो अमेरिकी सरकार ने भी भारत के किसान आंदोलन पर अपना बयान जारी कर दिया और आंदोलन के स्थल पर से इंटरनेट सेवा हटाने की सरकार की कार्रवाई को गलत बताते हुए किसानों से बात करने की सलाह दे दी।

सवाल उठता है कि क्या सरकार समर्थक गोदी मीडिया और आईटी सेल क्या अमेरिकी प्रशासन के उस बयान को भी भारत की संप्रभुता पर हमला मानता है यह मसला सिर्फ अमेरिकी सरकार तक ही सीमित नहीं है।

संयुक्त राष्ट्र संघ का अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने भी किसान आंदोलन पर अपना बयान जारी कर दिया है। आने वाले दिनों में अंतरराष्ट्रीय स्तर से और भी बयान आ सकते हैं।

सच कहा जायए तो किसान आंदोलन का अंतरराष्ट्रीयकरण हो चुका है। पूरी दुनिया की नजर अब इस पर आ चुकी है। इसके समर्थन करने वालों के खिलाफ होने वाले सरकारी दमन पर दुनिया की नजर रहेगी और दुनिया अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करेगी।

आंदोलन तो अब निकट भविष्य में समाप्त होने वाला नहीं और कृषि कानूनों पर मोदी सरकार अपनी लड़ाई हार चुकी है। इसलिए बेहतर यही होगा कि सरकार फिर से नया कानून बनाने की घोषणा कर दे और वर्तमान कानून को वापस ले ले। यही देश के हित में होगा और सरकार के हित में भी।

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