बहुसंख्यकवादी चेहरा चमकाने का ही सहारा

इस मुकाम पर मोदी राज को अगर अपने बहुसंख्यकवादी समर्थन की इतने प्रकट रूप से जरूरत पड़ रही हैए तो यह कोई इस या उस राज्य के भाजपायी मुख्यमंत्रियों केए अपनी स्थिति कमजोर होती महसूस करने का ही मामला नहीं है। यह तो मोदी के नेतृत्व में समूची हिंदुत्ववादी कतारबंदी के ही अपनी स्थिति कमजोर होती महसूस करने का मामला है।

बेशक इसमें बढ़ते आर्थिक संकट का भी हाथ हैए जिसे कोविड महामारी तथा उससे निपटने के नाम पर अंधाधुंध लॉकडाउन लगाए जाने समेत इस सरकार की विफलताओं ने और उग्र बनाया है।

भाजपा.शासित राज्यों में एक शर्मनाक होड़ लगी हुई है। यह होड़ है मुस्लिम विरोधी आक्रामकता के प्रदर्शन के जरिएए अपने बहुसंख्यकवादी समर्थन आधार को मजबूत करने की।

बेशक संघ तथा उसके राजनीतिक बाजू यानी पहले जनसंघ तथा अब भाजपा की हमेशा से हीए यही रीति.नीति रही है। यहां तक कि खुद आरएसएस का इतिहास गवाह है कि उसकी स्थापना ही मुस्लिम विरोधी गोलबंदी के लिए की गयी थी। फिर भी संघ परिवार की इस जांची.परखी कार्यनीति मेंए नरेंद्र मोदी के शासन में एक नया तत्व जरूर जुड़ा है।

यह नया तत्व हैए इस मुस्लिम विरोधी आक्रामता के प्रदर्शन या कहना चाहिए कि अभ्यास के लिएए नित नये.नये बहाने खोजना। ये बहाने या मुद्दे चूंकि न सिर्फ सतही बल्कि पूरी तरह से फर्जी होते हैंए लोगों के बीच असर करने के लिहाज से उनकी धार बहुत जल्द कुंद हो जाती है और जल्दी.जल्दी ये बहाने खोजने होते हैं।

संघ परिवार के दुर्भाग्य से मोदी राज न सिर्फ आम जनता को कोई वास्तविक राहत देने में विफल रहा है बल्कि आम जनता की तकलीफें ही तरह.तरह से बढ़ाने में लगा है और इसके चलतेए न सिर्फ इन बहानों पर उसकी निर्भरता बढ़ गयी है बल्कि इन बहानों की धार के घिसने की रफ्तार भी लगातार बढ़ती जा रही है।

इसलिएए हर नये बहाने का उपयोगिता.जीवन पहले वाले से कम हो जाता है और हर बार पहले से भी जल्दी नया बहाना खोजना होता है। बहरहालए मोदी राज ने भी इन बहानों की आपूर्ति में कोई कमी नहीं आने दी है। कथित श्गोहत्याश् से शुरू कर के मोदी राज ने कथित श्घर.वापसीश् तथा श्लव जेहादश् तकए तरह.तरह के पुराने बहानों को नयी धार देकर तो पेश किया ही हैए धारा.370 तथा श्बंगलादेशी घुसपैठिएश् जैसे हथियारों को एनआरसीध्सीएए तथा जम्मू.कश्मीर को बांटने तथा उसका दर्जा घटाने जैसे नये तथा कहीं घातक रूप देकर भी पेश किया है और राममंदिर से लेकरए बढ़ती मुस्लिम आबादी जैसे सदाबहार बहाने तो खैर हैं ही।

इसी क्रम में ताजातरीन बहाने के तौर परए राममंदिर के लिए चंदा अभियान के रूप में विवादास्पद मंदिर के मुद्दे का पुनराविष्कार ही नहीं किया गया हैए इस चंदा अभियान के लिए यात्राओं के नाम पर हिंदुत्ववादी हुल्लड़बाजों के उकसावेपूर्ण हिंसक जुलूसों के रूप मेंए इसको बाकायदा हमले के हथियार में बदला भी गया है।

शिवराज शासित मध्य प्रदेश में इंदौरए उज्जैनए मंदसौर तथा कुछ अन्य स्थानों परए इन कथित यात्राओं के जरिए न सिर्फ बाकायदा सांप्रदायिक हिंसा भड़कायी गयी बल्कि पुलिस.प्रशासन की सरासर सांप्रदायिक रूप से पक्षपातपूर्ण कार्रवाइयों के जरिएए बाकायदा यह संदेश भी दिया गया कि शासन खुले तौर परए इन हुल्लड़बाजों के साथ है।

लेकिनए बात इकतरफा गिरफ्तारियों आदि पर ही खत्म नहीं हो गयी। संभवतरू निकट के ही योगी आदित्यनाथ राज से प्रेरणा लेकरए कम से कम दो स्थानों पर पुलिस व प्रशासन ने मुसलमानों के खिलाफ ऐसी कार्रवाइयां कींए जो न सिर्फ पूरी तरह से गैरकानूनी थीं बल्कि ब्रिटिश राज के जमाने बाद से जो सुनने में ही नहीं आयी थीं।

एक मामले मेंए हुल्लड़बाजों की हिंसक भीड़ पर पत्थर फेंकने के शक मेंए मुसलमानों के घर गिरा दिएए तो एक और जगह पर घटना के दो दिन बाद श्सड़क चौड़ी्य करने के लिएए एक लाइन से मुसलमानों के घरों का एक हिस्सा तोड़ दिया गया। प्रशासन का कहना था कि बेशकए पहले सड़क बनाने का ही विचार थाए लेकिन बाद में सड़क चौड़ी करने का भी निर्णय कर लिया गया!

खैर! बात इतने पर भी खत्म नहीं हुई। राज्य प्रशासन के शीर्ष पर खुद मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान भी इस मामले में कूद पड़े और उन्होंने पूरे संदर्भ से काटकर श्श्पथराव को मुद्दा बनाकर उछाल दिया।

उन्होंने पथराव को हाथ के हाथ कश्मीर में पथराव की घटनाओं से जोड़कर अतिरिक्त रूप से गंभीर अपराध का रूप देते हुएए एलान किया कि पथराव करने वालों को छोड़ा नहीं जाएगा और उनके खिलाफ कड़ी सजा का प्रावधान करने वाला कानून बनाया जाएगा। याद रहे कि इससे करीब एक पखवाड़ा पहले हीए शिवराज चौहान की सरकार ने मध्य प्रदेश में लव जेहाद संबंधी अध्यादेश जारी किया था।

कांग्रेस के विधायक तोड़करए दोबारा मध्य प्रदेश में सत्ता में आने के बाद सेए शिवराज चौहान हमलावर हिंदुत्व का आइकॉन माने जाने वालेए नजदीकी उत्तर प्रदेश के अपनी ही पार्टी के मुख्यमंत्रीए आदित्यनाथ से जो होड़ सी करते नजर आ रहे हैंए उसे अनेक टिप्पणीकारों ने दर्ज किया है।

लव जेहाद कानून के मामले में यह होड़ साफ.साफ दिखाई दे रही थीए जिसके अंतर्गत अंतर्धार्मिक विवाहों को ज्यादा से ज्यादा गंभीर रूप से दंडनीय अपराध बनाने की कोशिश की जा रही थी। इसके चंद हफ्ते में हीए कथित राम मंदिर चंदा अभियान के प्रसंग में शिवराज चौहान को अगर फिर से अपने हिंदुत्ववादी चेहरे को चमकाने की जरूरत पड़ गयी हैए तो यह जोड़.तोड़ से बनी इस सरकार के पांव तले की रेत खिसकती महसूस करने का ही इशारा है।

बहरहालए योगी राज में उत्तर प्रदेश भी राम मंदिर के लिए चंदा अभियान के नाम पर मुस्लिम विरोधी हुल्लड़बाजी की मुहिम में कैसे पीछे रह सकता था। मध्य प्रदेश में घटनाओं का सिलसिला थमा भी नहीं थाए कि उत्तर प्रदेश में यही खेल शुरू हो गया।

लेकिनए उत्तर प्रदेश में बुलंदशहर जिले में शिकारपुर में ऐसे दुपहिया सवार जुलूस में शामिल लोगों ने जब बेबात मुसलमानों को गालियां देने और पाकिस्तान जाने को कहने के अपने वीडियो सोशल मीडिया में डालेए वाइरल हो गए। सोशल मीडिया पर ज्यादा शोर मचने के बादए योगी राज की पुलिस को कम से कम दिखावे के लिए कुछ कार्रवाई करनी पड़ी और कथित रूप से मंदिर के लिए चंदा करने निकले जूलूस में से दो लोगों को गिरफ्तार करना पड़ा।

ऐसा लगता है कि यह दिखावटी कार्रवाई किए जाने के पीछे मकसद राष्टड्ढ्रपति से लेकरए मुख्यमंत्रियों तकए सत्ता में बैठे उन संघ.परिवारियों को शर्मिंदगी से बचाना भी थाए जिन तक राम मंदिर के लिए देशव्यापी चंदा अभियान के तहत आने वाले कुछ दिनों मेंए विहिप आदि के शीर्ष नेता पहुंचने जा रहे हैं। मंदिर के लिए चंदे के नाम परए पांच लाख गांवों में पहुंचने समेतए देशव्यापी अभियान की जो योजना बनायी गयी हैए जाहिर है कि वह भी सबसे बढ़कर मोदी राज के बहुसंख्यकवादी समर्थन आधार को मजबूती देने की ही योजना है।

इस मुकाम पर मोदी राज को अगर अपने बहुसंख्यकवादी समर्थन की इतने प्रकट रूप से जरूरत पड़ रही हैए तो यह कोई इस या उस राज्य के भाजपायी मुख्यमंत्रियों केए अपनी स्थिति कमजोर होती महसूस करने का ही मामला नहीं है।

यह तो मोदी के नेतृत्व में समूची हिंदुत्ववादी कतारबंदी के ही अपनी स्थिति कमजोर होती महसूस करने का मामला है। बेशकए इसमें बढ़ते आर्थिक संकट का भी हाथ हैए जिसे कोविड महामारी तथा उससे निपटने के नाम पर अंधाधुंध लॉकडाउन लगाए जाने समेत इस सरकार की विफलताओं ने और उग्र बनाया है।

इसका राजनीतिक असरए पिछले ही महीनों हुए बिहार के विधानसभाई चुनावों में देखने को मिला थाए जिसमें मोदी राज को अपने चुनाव प्रचार के लिए बेहतर भविष्य के किन्हीं भी आश्वासनों का कोई सहारा ही नहीं था और वह इसी तर्क के सहारे चुनाव लड़ रहा था कि पंद्रह साल पहले तक रहे लालू.राबड़ी राज में हालात अब से भी खराब थे! इसके बावजूदए भाजपा का गठजोड़ चुनाव हारते.हारते बचा।

इसके ऊपर सेए किसान आंंदोलन के रूप में मोदी राज के सामने ऐसी चुनौती आ खड़ी हुई हैए जैसी चुनौती उसे इससे पहले कभी नहीं मिली थी। महामारी को अवसर बनाकरए श्रम कानूनों की ही तरहए तीन कार्पोरेटपरस्त कृषि कानूनों को धक्के से चलाने के लालच मेंए मोदी राज फंस गया है।

अब उससे न ये कृषि कानून उगलते बन रहे हैं और न निगलते। स्वतंत्र भारत के इस अभूतपूर्व किसान आंदोलन को सिर्फ एक.दो राज्यों के किसानों का आंदोलनए धनी किसानों का आंदोलनए खालिस्तान समर्थकों का आंदोलनए चीन.पाकिस्तान समर्थित आंदोलन आदिए आदि कहकर बदनाम करने की अपनी सारी कोशिशों के विफल हो जाने के बाद और हरियाणा उत्तर प्रदेश उत्तराखंड तथा राजस्थान में ही नहीं अन्य अनेक राज्यों में भी किसानों के बढ़ते पैमाने पर न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसे मुद्दों पर हरकत में आने को देखते हुएए मोदी राज को बखूबी समझ में आ रहा है इस आंदोलन के बढ़ते राजनीतिक असर की काटए वह प्रचार के संसाधनों पर अपने सारे नियंत्रण से भी नहीं कर सकता है।

इसी एहसास का एक जीता.जागता प्रमाणए हरियाणा के मुख्यमंत्री खट्टड्ढर के किसानों को कृषि कानूनों के लाभ समझाने के कार्यक्रम के विरोध प्रदर्शन की भेंट चढ़ जाने के बादए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह द्वारा दी गयी यह सलाह है कि अभी किसानों के कोई कार्यक्रम आयोजित नहीं करें।

ठीक इसी संदर्भ मेंए चाहे लव जेहाद कानून हो या राम मंदिर के लिए चंदे के नाम पर अभियानए अपना बहुसंख्यकवादी चेहरा चमकाने के सहारेए मोदी राज के लिए बहुत महत्वपूर्ण हो गए हैं।

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