रजनी की न तो कमल की हां

रजनीकांत के चुनाव में उतरने से त्रिकोणीय मुकाबले की जो स्थिति बनती दिख रही थीए वह अब अन्नाद्रमुक और द्रमुक की अगुवाई वाले गठबंधनों के बीच सिमट गई है।  तमिलनाडु की राजनीति में सिनेमा का तड़का तय है। चौबीस साल तक ऊहापोह के बाद सुपरस्टार रजनीकांत ने आखिरकार तमिलनाडु की राजनीति से दूर रहने का फैसला कर लियाए लेकिन एक अन्य सुपरस्टार कमल हासन राजनीति के मैदान में पूरी तरह से सक्रिय हैं।

रजनीकांत ने अपने प्रशंसकों और समर्थकों से माफी मांग ली है और कहा है कि अपनी खराब सेहत की वजह से वह यह ष्मुश्किल फैसलाष् ले रहे हैं। उनकी इस घोषणा ने राज्य की राजनीति में हलचल मचा दी है।हालांकिए खराब स्वास्थ्य के कारण रजनीकांत का यह फैसला लेना कहानी का महज एक पहलू है। दरअसलए तमाम दावों के बावजूद उनकी तैयारी अधूरी थी। उन्होंने 31 दिसंबरए 2017 को राजनीतिक पार्टी बनाने की घोषणा की थीए लेकिन वह अब तक उसका नाम भी तय नहीं कर सके थे। फिरए उन्होंने कहा था कि वह ष्अलग तरह की राजनीतिष् करेंगेए जो ष्अध्यात्मवादष् से प्रेरित होगीए मगर इसे भी वह स्पष्ट नहीं कर सके थेए जिस कारण मतदाता भ्रमित ही होते। राजनीतिक पंडितों के लिए यह साफ संकेत था कि राजनीति को लेकर रजनीकांत अपना मन नहीं बना सके हैं। इतना ही नहींए वह भाजपा के पाले में भी जाते दिखे थे।

भाजपा पिछले कुछ समय से राज्य की राजनीति पर नजर बनाए हुए है। बेशक वह अभी अपने पैर जमाने में सक्षम नहीं दिख रहीए पर वह ऐसे किसी चेहरे की तलाश में रही हैए जो राज्य में उसका प्रतिनिधित्व कर सके। रजनीकांत के फैसले ने उसकी उम्मीदों को भी जमींदोज कर दिया है। रजनीकांत के बरअक्सए कमल हासन ने 2018 में अपनी पार्टी का एलान किया था। वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में वह उतरे और 3ण्7 फीसदी वोट भी हासिल किए। वह तमाम विवादित मुद्दों पर अपनी राय जाहिर करते रहते हैं। मदुरै व चेन्नई के शहरी निर्वाचन क्षेत्रों में उन्होंने 10 प्रतिशत से अधिक वोट हासिल किए थे। वह अब विधानसभा चुनाव में सभी 234 सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं।

कमल हासन को शहरी स्तर पर ज्यादा पसंद किया जाता हैए जबकि रजनीकांत आम आदमी की पसंद हैं। हम कह सकते हैंए कमल हासन की छवि दक्षिण भारत में बॉलीवुड सुपरस्टार आमिर खान की तरह हैए कुछ गंभीरए बुद्धिजीवी जैसी और रजनीकांत की छवि सुपरस्टार सलमान खान जैसी है। हांए हम कह सकते हैं कि कमल हासन की पहुंच अपेक्षाकृत कम है और रजनीकांत की पहुंच ज्यादा। दोनों का अपना.अपना प्रभाव है। कमल हासन इन दिनों पूरी तरह से राजनीति में लगे हैं।

उनकी सभाओं में काफी भीड़ उमड़ती हैए लेकिन यह भीड़ उन्हें देखने आती है या वोट भी करेगीए यह तो चुनाव ्रके बाद ही पता चलेगा। कमल हासन खुद को तमिल राजनीति के कद्दावर नेता रहे एमजी रामचंद्रन से जोड़कर देखते हैं और लोगों को याद दिलाते हैं कि वह रामचंद्रन की गोद में खेलकर बड़े हुए हैं। रामचंद्रन की विरासत पर उनका दावा हैए लेकिन वास्तव में उनके पास कांग्रेस के वोट ही जाएंगे। एक समय तमिलनाडु में कांग्रेस सशक्त पार्टी हुआ करती थीए लेकिन अब स्थितियां बदल रही हैं। ऐसे मेंए कांग्रेस के पारंपरिक वोट अगर कमल हासन को जाते हैंए तो कोई आश्चर्य नहीं।
एक बात और गौर करने की है कि वह राज्य में सत्तारूढ़ अन्नाद्रमुक को खूब निशाना बनाते हैंए लेकिन द्रमुक पर अपेक्षाकृत कम बोलते हैं। इसलिए यह कयास स्वाभाविक है कि क्या कमल द्रमुक के साथ गठबंधन कर सकते हैंघ् ऐसी चर्चा और कोशिश हुई थी कि कमल हासन और रजनीकांत मिलकर राजनीति करेंए पर दोनों की विचारधारा में अंतर है। वैसे दोनों मिल जातेए तो तीसरी ताकत बन सकते थे। हालांकिए कमल हासन खुद को तीसरी ताकत बताते हैंए लेकिन उनके पास ज्यादा मत प्रतिशत नहीं है। क्या उनके लिए रजनीकांत अपील कर सकते हैंघ् बहरहालए कमल हासन कुछ समय तमिल बिग बॉस को देने के बाद राजनीति में डूबे हुए हैंए लेकिन वह भविष्य में फिल्में करेंगे और रजनीकांत भी काम जारी रखेंगे।

एमजी रामचंद्रन भी मुख्यमंत्री होने के बावजूद फिल्मों में काम करते थे। निश्चय हीए रजनीकांत के लाखों अनुयायी हैं। सिनेमा का उनका जादू इन दिनों बेशक कमजोर पड़ता दिख रहा हैए लेकिन वह अब भी अपने प्रशंसकों के दिल में बसते हैं। लोग आज भी उनकी फिल्मों का इंतजार करते हैं। प्रशंसक उन्हें उनके ष्असंभव स्टंटष् और स्टाइलिश ढंग से दिए गए ष्जवाबी डॉयलॉगष् के लिए पसंद करते हैं। लेकिन अपनी इस सफलता को वह राजनीति की दुनिया में भी आसानी से बरकरार रख पातेए यह सोचना मूर्खता होगी। असल मेंए सिनेमा से गुंथी हुई तमिलनाडु की राजनीति हमेशा से जगमगए जटिल और अलहदा रही हैए लेकिन बाकी तमाम जगहों की तरह अनिश्चित भी रही है।

समर्थकों व प्रशंसकों ने रजनीकांत को सियासत में उतरने के लिए प्रोत्साहित किया था। वे रुपहले परदे पर उनको बुराईए बुरे हालात और बुरे इंसानों से लड़ते देखते रहे हैं। उन्हें उम्मीद थी कि वह उनके पक्ष में आवाज बुलंद करेंगेए और रोजाना की उनकी मुश्किलों से अपने अंदाज में लड़ेंगे। मगर रजनीकांत ने खुद को किनारे रखने में ही अपना हित देखा। वह नियति में विश्वास करते हैं। उन्होंने दावा किया था कि वह राजनीति में इसलिए उतर रहे हैंए क्योंकि यह वक्त की जरूरत है।

लेकिन लगता है कि वह हालात को सही से पढ़ नहीं पाए। उनसे यह उम्मीद की गई थी कि वह अपने पांवों पर खड़े होंगे और बिना किसी टेक से ही राजनीति में लड़कर जीत जाएंगेए जिसे उन्होंने कभी युद्ध बताया था। मगर ऐसा कुछ करने के बजाय उन्होंने पीछे हटने का रास्ता चुना। हालांकिए उन्होंने अपने पांव जरूर वापस खींच लिए हैंए लेकिन इस ईमानदार स्वीकारोक्ति के लिए उनकी तारीफ जरूर की जानी चाहिए कि राजनीति उनके वश की बात नहीं है। अब लोगों की नजर कमल हासन पर है कि वह आगामी चुनाव में क्या गुल खिलाते हैं। साफ हैए अब अन्नाद्रमुक और द्रमुक नेतृत्व वाले गठबंधनों के बीच चुनावी जंग की पुरजोर संभावना है। मगर इसमें अब भी कई मोड़ आ सकते हैंए क्योंकि विधानसभा चुनाव अभी पांच महीने दूर हैं।

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