बैंकों की ट्रैजिडी

बैंकों का जो राष्ट्रीयकरण 1971 में किया गया था वह आज उलट गया है। इनका राष्ट्रीयकरण इसलिए किया गया था कि ये ग्रामीण और गरीब क्षेत्रों को ऋ ण देंगे। आज ये उसी क्षेत्र को ऋ ण से वंचित कर रहे हैं।

इसलिए वर्तमान में बैंकों की सुदृढ़ता वैसी ही है जैसे पानी पर तैरता तेल रंग बिरंगी झांकी का अहसास पैदा कराता है अथवा एयरकन्डीशन रूम में बैठे हुए को बाहर चलने वाली आंधी का अहसास नहीं होता है।

देश की अर्थव्यवस्था मूलतरू कठिनाई में है यद्यपि बैंक सुदृढ़ हैं चूंकि इन्हें देश की अर्थव्यवस्था से कुछ लेना देना नहीं है और संभवतरू आगे भी सुदृढ़ ही रहेंगे।

सम्पूर्ण विश्व के बैंक आज संकट में है। अमेरिका के बैंकों के लाभ जून में ही 30 प्रतिशत गिर गये थे। आज इनकी स्थिति ज्यादा कठिन है। कई विद्वानों का मानना है कि सम्पूर्ण वैश्विक बैंकिंग व्यवस्था पर संकट आ सकता है।

इसके विपरीत भारत के बैंकए विशेषकर सार्वजनिक बैंकए बहुत ही सुदृढ़ दिख रहे हैं। इनके लाभ उत्तरोत्तर बढ़ रहे हैं और इन पर किसी प्रकार का संकट नहीं दिखता है। बैंकों की इस सुदृढ़ता पर संदेह उठता है क्योंकि जमीनी स्तर पर ऋ ण लेने वालों की स्थिति अच्छी नहीं दिखती है।

उत्तराखंड के एक दुकानदार ने बताया कि कोचिंग और प्राइवेट स्कूलों का कारोबार लगभग शून्यप्राय हो गया है। दूसरे ने बताया कि उद्यमियों ने लोन लेते समय जो पोस्ट डेटेड चेक दे रखे थे उनका भी भुगतान वे नहीं कर पा रहे हैं क्योंकि उनकी आय में गिरावट आ गई है।

तीसरे ने बताया कि कुछ व्यापारी अपने व्यक्तिगत खर्चों में कटौती करके बैंकों से लिए गये ऋण का भुगतान कर रहे हैं क्योंकि सरकार ने इस समय बैंकों के ऋण की अदायगी पर सख्ती कर रखी है।

वे झंझट नहीं मोल लेना चाहते हैं। एक छोटे चार्टर्ड एकाउंटेंट ने बताया कि पूर्व में जो छोटे व्यापारी जीएसटी रिटर्न भरने के लिए 1000 रुपये की फीस अदा करते थे वे आज 600 से 700 रुपया ही दे रहे हैं क्योंकि उनके पास आय नहीं है।

वैश्विक मूल्यांकनों के अनुसार भारत का जीडीपी पिछले वर्ष की तुलना में इस वर्ष 7 प्रतिशत कम रहेगा। अतरू प्रश्न यह है कि इस जमीनी दबाव के बावजूद हमारे बैंक इतने सुदृढ़ कैसे दिख रहे हैं।

विषय की तह में जाने के लिए हमें अपने बैंकों के द्वारा दिए गये ऋ णों की तह में जाना होगा। एक रपट के अनुसार हमारे बैंकों द्वारा दिए गये कुल ऋण में बड़ी कम्पनियों का हिस्सा 33 प्रतिशतए विदेशी कंपनियों का 13 प्रतिशत और कृषि का 9 प्रतिशत हिस्सा है।

ये तीनों क्षेत्र मूल रूप से सुदृढ़ हैं। इसलिए इन्हें दिए गये ये 55 प्रतिशत ऋण सुदृढ़ होंगे ऐसा हम मान सकते हैं। शेष 45 प्रतिशत में 33 प्रतिशत रिटेल को एवं 12 प्रतिशत ऋ ण छोटे उद्योगों को दिए गये हैं। इनकी सुदृढ़ता पर विचार करना होगा।

रिटेल क्षेत्र में दिए गये ऋण का एक हिस्सा वाहनों के लिए है। इसमें 80 प्रतिशत सरकारी कर्मियों अथवा सार्वजनिक इकाइयों के कर्मियों को दिए गये हैं। रिटेल का दूसरा हिस्सा पर्सनल लोन यानि व्यक्तिगत लोन है।

इसमें 94 प्रतिशत सरकारी अथवा सार्वजनिक इकाइयों के कर्मियों को दिए गये हैं। तीसरा हिस्सा प्रापर्टी का है जिसमें 50 प्रतिशत ऋण सरकारी अथवा सार्वजनिक इकाइयों के कर्मियों को और 20 प्रतिशत ऋण बड़ी कम्पनियों के कर्मियों को दिए गये हैं।

इस प्रकार बैंकों के द्वारा रिटेल क्षेत्र में दिए गये ऋण में से 81 प्रतिशत ऋण सरकारी अथवा सार्वजनिक इकाइयों के कर्मियों अथवा बड़ी कम्पनियों के कर्मियों को दिए गये हैं। इन्हें हम हम सुदृढ़ मान सकते हैं।

लेकिन इस सुद्रिता का रहस्य यह है कि ये लोग मूल अर्थव्यवस्था के बाहर हैं। टैक्सी चालक कि टैक्सी चले या न चलेए सररोअद ट्रांसपोर्ट ऑफिसर द्वारा लिए गए ऋण कि अदायगी हो ही जाएगी चूंकि उसके वेतन सुअर्किषत हैं।

हमारे बैंकों द्वारा दिए गये शेष 12 प्रतिशत ऋ ण छोटी इकाइयों को दिए गये हैं। इनमें भी संकट नहीं दीखता है जिसके तीन कारण हमें ध्यान में रखने होंगे। पहला यह कि कोविड संकट के दौरान सरकार ने बैंकों को लोन के रिपेमेंट को स्थगित करने को कहा था जिसे श्मोरिटोरियमश् कहा जाता है। इसलिए छोटी इकाइयों पर रिपेमेंट का बोझ तत्काल नहीं पड़ा है।

दूसरा कारण यह कि कोविड संकट के चलते सरकार ने बैंकों को कहा था कि लिए गये ऋण की अदायगी की मियाद को आगे बढ़ा दें जिसे श्रीशेड्यूलश् कहा जाता है।

लोन रीशेड्यूल होने के कारण फिलहाल छोटे उद्योगों को रीपेमेंट नहीं करना पड़ा है और बैंकों पर अभी संकट नहीं आया है। तीसरा कारण यह है कि सरकार ने तीन लाख करोड़ रूपये की योजना बनाई है जिसके अंतर्गत बैंकों द्वारा छोटे उद्योगों को दिए गये अतरिक्त ऋ ण की गारंटी केन्द्र सरकार ने ली है।

इस योजना के अंतर्गत छोटे उद्योगों द्वारा जो ऋ ण लिए जा रहे हैं उसका एक हिस्सा वे पूर्व में बैंकों से लिए गये ऋ ण की आदायगी के लिए कर रहे हो सकते हैं। जिसके कारण तत्काल उन पर और उन्हें ऋ ण देने वाले बैंकों पर संकट नहीं आ पड़ा है। यानी इस क्षेत्र की सुदृढ़ता वर्तमान देनदारी को पीछे हटाने के कारण दिख रही है।

समग्रता से अवलोकन करें तो हमारे बैंकों द्वारा 55 प्रतिशत ऋ ण बड़ी कम्पनियोंए विदेशी कम्पनियों और कृषि क्षेत्र को दिए गये जो सुदृढ़ हैं।

इनके द्वारा 33 प्रतिशत ऋण जो रिटेल को दिए गये वह मूलतरू सरकारी एवं सार्वजनिक इकाइयों के कर्मियों को दिए गये हैं इसलिए ये सुदृढ़ हैं। छोटी इकाइयों को जो 12 प्रतिशत ऋ ण दिए गये उनपर तत्काल संकट नहीं दीखता है क्योंकि इन्हें मोरिटोरियम आदि के माध्यम से तात्कालिक राहत दे दी गई है

। लेकिन बैंकों द्वारा दिए गये ऋणों की इस वर्तमान स्थिरता का यह अर्थ नहीं है कि हमारी अर्थव्यवस्था सुदृढ़ है और आगे भी इन ऋ णों कि स्तिथि स्थिर बनी रहेगी।

वास्तव में देश की अर्थव्यवस्था दो भागों में विभक्त हो गई है। एक हिस्सा सार्वजनिक इकाइयों और बड़ी कम्पनियों एवं इनके कर्मचारियों का है जो सुदृढ़ है।

इस हिस्से को ही हमारे बैंक ऋण दे रहे हैं। मेरी गणना के अनुसार देश के 133 करोड़ जनता में से 10 करोड़ ही इस हिस्से में आते होंगे। इनके अतिरिक्त जो 123 करोड़ देश के नागरिक हैं उनकी परिस्थिति कठिन है जैसा कि दुकानदारों आदि के वक्तव्यों से ऊपर बताया गया है। इन्हें ही हमारी बैंकिंग व्यवस्था ऋ ण भी कम ही दे रही है।

यानी बैंकों कि सुदृढ़ता इसलिए है कि वे आम आदमी और देश की जनता को ऋण दे ही नहीं रहे हैं। उनका कार्य क्षेत्र देश के समृद्ध बड़ी कंपनियों एवं सरकारी कर्मियों तक सिमट कर रह गया है। जब जनता को ऋ ण देंगे ही नहींए तो संकट कहां से आएगाघ्

बैंकों का जो राष्ट्रीयकरण 1971 में किया गया था वह आज उलट गया है। इनका राष्ट्रीयकरण इसलिए किया गया था कि ये ग्रामीण और गरीब क्षेत्रों को ऋ ण देंगे। आज ये उसी क्षेत्र को ऋ ण से वंचित कर रहे हैं।

इसलिए वर्तमान में बैंकों की सुदृढ़ता वैसी ही है जैसे पानी पर तैरता तेल रंग बिरंगी झांकी का अहसास पैदा कराता है अथवा एयरकन्डीशन रूम में बैठे हुए को बाहर चलने वाली आंधी का अहसास नहीं होता है। देश की अर्थव्यवस्था मूलतरू कठिनाई में है यद्यपि बैंक सुदृढ़ हैं चूंकि इन्हें देश की अर्थव्यवस्था से कुछ लेना देना नहीं है और संभवतरू आगे भी सुदृढ़ ही रहेंगे।

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