मत समझिए लीची के पत्तों और छिलकों को बेकार, इससे तैयार वर्मी कंपोस्ट से लहलहाएंगी फसलें
लीची के पत्तों और छिलकों को बेकार मत समझिए। इससे तैयार वर्मी कंपोस्ट से अब फसलें लहलहाएंगी। मुशहरी स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र पिछले दो सालों से शोध कर रहा था। इसमें सफलता मिली है। इसका उपयोग लीची के पौधों पर किया गया तो अन्य वर्मी कंपोस्ट की तुलना में ग्रोथ बेहतर रही। मिट्टी की गुणवत्ता में भी सुधार हुआ। लीची के छिलके व पत्तियों से वर्मी कंपोस्ट तैयार करने के लिए केंद्र के निदेशक के नेतृत्व में शोध हुआ। केंद्र के तकरीबन पांच हेक्टेयर में लीची के पेड़ हैं। यहां प्रोसेसिंग यूनिट भी है।
पौधों का विकास 15 परसेंट अधिक
पिछले साल यहां से मिले तकरीबन पांच टन छिलके और पत्तियों से डेढ़ टन वर्मी कंपोस्ट तैयार किया गया था। इसमें तीन से चार माह का समय लगा। तैयार वर्मी कंपोस्ट को चार हेक्टेयर में लगे लीची के पौधों में इस्तेमाल किया गया। देखा गया कि अन्य की तुलना में इस वर्मी कंपोस्ट से पौधों का विकास 15 परसेंट ज्यादा हुआ। साथ ही मिट्टी की गुणवत्ता में बढ़ोतरी देखी गई। खेत में ऑर्गेनिक कार्बन व जलधारण करने की क्षमता व सूक्ष्म पोषक तत्व बढ़े मिले।
नाइट्रोजन की मात्रा अधिक
विभिन्न पदार्थों से वर्मी कंपोस्ट बनाने पर शोध की शुरुआत वर्ष 2018 में हुई। उस समय केले के तने, लीची की पत्तियों व छिलकों के अलावा घास पर काम शुरू किया गया। जांच में पाया गया कि केले के तने में 1.92-2.18 और घास में 1.33-1.75 फीसद नाइट्रोजन है, जबकि लीची के छिलके में 1.96-2.16 व पत्तियों में 2.01-2.35 फीसद नाइट्रोजन। इस तरह, पत्तियों और छिलकों को मिला देने पर इससे तैयार वर्मी कंपोस्ट में नाइट्रोजन की मात्रा बढ़ जाती है।
कहते हैं निदेशक डॉ विशालनाथ
राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ. विशालनाथ बताते हैं कि लीची की पत्तियों व छिलके में अन्य की तुलना में ज्यादा पोषक तत्व हैं। इसमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस, पोटाश, प्रोटीन, लौह तत्व सहित कई माइक्रो न्यूट्रिएंट्स पाए जाते हैं। ये पौधों के लिए काफी लाभदायक हैं। पहले पत्तियों व छिलके को फेंक दिया जाता था। अब किसान व लीची प्रोसेसिंग यूनिट से जुड़े उद्यमी इससे वर्मी कंपोस्ट बना सकते हैं।