MICRORNA से ठीक होगा जीभ का कैंसर

भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान-मद्रास, कैंसर संस्थान, चेन्नई के श्री बालाजी डेंटल कॉलेज अस्पताल तथा बेंगलुरु के भारतीय विज्ञान संस्थान के शोधकर्ताओं की एक टीम ने एक खास किस्म के माइक्रोआरएनए की पहचान की है जो जीभ का कैंसर होने पर अत्याधिक सक्रिय रूप से दिखाई देता है। वैज्ञानिकों ने इस माइक्रोआरएनए को एमआईआर -155 का नाम दिया है।

यह एक किस्म के छोटे रिबो न्यूक्लिक एसिड हैं। ये एसिड ऐसे नॉन कोडिंग आरएनए हैं जो कैंसर को पनपने में मदद करने के साथ ही विभिन्न जैविक और नैदानिक प्रक्रियाओं के नियंत्रित करने में शामिल रहते हैं। ऐसे में जीभ के कैंसर के इलाज के लिए इन आरएनएन में बदलाव कर उपचार की नयी तकनीक विकसित करने की संभावनाओं का पता लगाया जा सकता है।

आईआईटी मद्रास के जैव प्रौद्योगिकी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर करुणाकरण ने इस शोध के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा,“एमआईआरएनए को पहले से ही जीभ के कैंसर में एक ओंकोजीन के रूप में पहचाना जाता है। उन्होंने कहा कि कैंसर से जुड़े एमआईआरएनए को ओंकोमीर्स या ओंकोमीआर कहा जाता है।

ये कैंसर फैलाने वाली कोशिकाओं का दमन कर कैंसर को फैलने से रोकने में मदद करते हैं। कुछ ओंकोमीआर कैंसर को पनपने से भी रोकते हैं ऐसे में यह जरूरी है कि कैंसर कोशिकाओं के दमन और प्रसार दोंनो से जुड़े ओंकोमीआर की पहचान की जाए।’’

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