2 साल तक आपको करना पड़ सकता है सोशल डिस्टेंसिंग के नियम का पालन
कोरोना वायरस ने पूरी दुनिया में कोहराम मचा कर रख दिया है। हर तरफ लोगों में भय व्याप्त है और लोग सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कर रहे हैं। कोरोना वायरस से जूझ रही और सामाजिक दूरी का पालन कर रही दुनिया को आने वाले 2 साल तक यानी 2022 तक कई सख्त नियमों का पालन करना पड़ सकता है। इस संबंध में कई तरह के शोध अब सामने आ रहे हैं।
वैज्ञानिकों का कहना है कि वायरस के खिलाफ जंग का यह मात्र पहला चरण है। आने वाले समय में और भी कई विपत्तियां सामने आ सकती हैं। हालांकि, कई देशों में वायरस का प्रभाव कमजोर होते देखकर लॉकडाउन में कुछ ढील दे दी गई है, लेकिन थोड़ी सी लापरवाही कोरोना वायरस के संक्रमण को फिर बढ़ा सकती है और लाखों लोग इसकी चपेट में आ सकते हैं। डॉ. आयुष पाडे के अनुसार, बुजुर्गों, बच्चों और उन लोगों के लिए सोशल डिस्टेंसिंग ही इलाज है, जिनकी बीमारियों से लड़ने की क्षमता कम है।
हावर्ड यूनिवर्सिटी के शोध में खुलासा
हाल ही में अमेरिका की हावर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का एक शोध साइंस जर्नल पत्रिका में प्रकाशित हुआ। यूनिवर्सिटी के टीएच चैन स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के वैज्ञानिकों को इस बात की गंभीर आशंका है कि लॉकडाउन में ढील के दौरान नियमों में थोड़ी भी लापरवाही की तो वायरस का प्रभाव कई इलाकों में फिर गंभीर रूप धारण कर सकता है और मानव समाज फिर एक बार गंभीर संकट का दौर देख सकता है।
यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने अपनी रिसर्च में एक कंप्यूटर मॉडल के जरिए परखा कि जब तक सामाजिक दूरी का सख्ती से पालन किया जाता है तो कोरोनावायरस का दोबारा संक्रमण रोका जा सकता है, उन्होंने अपने शोध में 2003 में फैले सार्स वायरस का भी इस संबंध में उदाहरण पेश किया।
6 माह सख्त सावधानी, 2 साल सोशल डिस्टेंसिंग का नियम जरूरी
वैज्ञानिकों का मानना है कि वायरस इंफ्लुएंजा के समान ही दुनियाभर में रहेगा। ऐसे में यह आशंका है कि आने वाले कम से कम 6 माह तक बहुत ज्यादा सावधानी बरतनी होगी, इसके अलावा उन्होंने अपने शोध में यह भी दावा किया है लॉकडाउन के नियमों का लोगों को कम से कम 2 साल तक पालन करना पड़ सकता है।
दो सप्ताह में दिखता है लॉकडाउन का परिणाम
लॉकडाउन की वजह से क्या कोरोना वायरस को रोकने में क्या सफलता मिली है, इसका आकलन करने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कम से कम 2 हफ्ते का इंतजार करने के लिए कहा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक कोरोना संक्रमण के नए केस नहीं आने पर ही लॉकडाउन के नियमों में थोड़ी बहुत ढील दी जानी चाहिए।
गाइडलाइन का पालन नहीं किया तो बढ़ेगा खतरा
हावर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का मानना है कि जब तक वैक्सीन नहीं बन जाती है, तब तक कोरोना संक्रमण से बचने के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जो गाइडलाइन तैयार की है, उसे कठोरता से पालन करना जरूरी है। एम्स के डॉ. अजय मोहन के अनुसार, वैक्सीन बनने में कम से कम 2 साल का समय लग सकता है तब तक हमें सोशल डिस्टेंसिंग जैसे नियमों का पालन करके जीवन जीना अनिवार्य करना होगा।
खुद में बदलाव करता है कोरोना वायरस
हावर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने यह भी खुलासा किया है कि कोरोना वायरस समय-समय पर खुद में बदलाव भी करता है, जो एक बेहद ही खतरनाक स्थिति है। ऐसे में वैक्सीन का निर्माण करना और भी ज्यादा जटिल हो सकता है। इसका मुख्य कारण यह है कि कोरोना संक्रमित किसी मरीज में लक्षण दिखाई देते हैं तो किसी मरीज में लक्षण बिल्कुल भी दिखाई नहीं देते हैं। ऐसे में खुद वैज्ञानिक भी अभी तक कोरोना वायरस को लेकर चल रहे शोध में संशय की स्थिति में हैं।