लॉकडाउन से असमंजस में 280 साल पुरानी परंपरा
जगन्नाथ पुरी रथयात्रा पर सस्पेंस
नई दिल्ली। लगभग 280 सालों के इतिहास में ये पहला मौका है जब कोरोना वायरस के चलते रथयात्रा रोकी जा सकती है। ये भी संभव है कि रथयात्रा इस बार बिना भक्तों के निकले। हालांकि, इस पर अंतिम निर्णय नहीं हुआ है। 3 मई को लॉकडाउन के दूसरे फेज की समाप्ति के बाद ही आगे की स्थिति को देखकर इस पर निर्णय लिया जाएगा।
23 जून को रथ यात्रा निकलनी है। अक्षय तृतीया यानी 26 अप्रैल से इसकी तैयारी भी शुरू हो गई है। मंदिर के भीतर ही अक्षय तृतीया और चंदन यात्रा की परंपराओं के बीच रथ निर्माण की तैयारी शुरू हो गई है। मंदिर के अधिकारियों और पुरोहितों ने गोवर्धन मठ के शंकराचार्य जगतगुरु श्री निश्चलानंद सरस्वती के साथ भी रथयात्रा को लेकर बैठक की है, लेकिन इसमें अभी कोई निर्णय नहीं हो पाया है।
नेशनल लॉकडाउन के चलते पिछले एक महीने से भी ज्यादा समय से पुरी मंदिर बंद है। सारी परंपराएं और विधियां चुनिंदा पूजापंडों के जरिए कराई जा रही है।गोवर्धन मठ, जगन्नाथ पुरी के शंकराचार्य जगतगुरु स्वामी निश्चलानंदजी सरस्वती ने मंदिर से जुड़े लोगों को सभी पहलुओं पर गंभीरता से विचार करते हुए रथयात्रा के लिए निर्णय लेने की सलाह दी है। मठ का मत ही इसमें सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण माना जाएगा। शंकराचार्य ही यहां रथयात्रा के निर्णय पर मुहर लगाएंगे।
भगवान जगन्नाथ, बड़े भाई बलभद्र, बलराम और बहन सुभद्रा के साथ पुरी में विराजित हैं। ये भारत के चार प्रमुख धामों में से एक है, यहां शंकराचार्य द्वारा स्थापित पीठ गोवर्धन मठ भी है।
भगवान जगन्नाथ की यह रथयात्रा आषाढ़ शुक्ल द्वितीया से आरंभ होती है। यह यात्रा मुख्य मंदिर से शुरू होकर 2 किलोमीटर दूर स्थित गुंडिचा मंदिर पर समाप्त होती है। जहां भगवान जगन्नाथ सात दिन तक विश्राम करते हैं और आषाढ़ शुक्ल दशमी के दिन फिर से वापसी यात्रा होती है, जो मुख्य मंदिर पहुंचती है। यह बहुड़ा यात्रा कहलाती है।