होलिका की विधि-विधान से करे पूजा संपन्न, होलिका दहन में इन चीजो को अग्नि में करे समर्पित
होली का पर्व उत्तर भारत के ज्यादातर हिस्सों में धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस दिन प्रहलाद के प्रतीक के रूप में होली के डंडे को गाड़ा जाता है और होलिका के रूप में लकड़ी और गोबर के उपलों की होली का दहन किया जाता है। दहन से पहले होलिका का विधिवत श्रंगार किया जाता है और उसके बाद विधि-विधान से पूजा संपन्न कर होली का दहन किया जाता है।
होली में चढ़ाए हनुमानजी के नाम की माला
होली के दहन में कई शुभ वस्तुओं को समर्पित करने का भी विधान है। मान्यता है कि कुछ खास वस्तुओं को होली की अग्नि में दहन करने से सुख-संपत्ति मिलती है और सौभाग्य प्राप्त होता है। सबसे पहले पूर्व दिशा की मुंह करके होलिका की पूजा प्रारंभ करें। पूजा में रोली, अक्षत, हल्दी, मेंहदी, अबीर, गुलाल, नारियल, सूत आदि समर्पित करें। इसके साथ गाय के गोबर से बनी हुई चार मालाएं होली में समर्पित करें। जो पितरों, हनुमानजी, शीतला माता और घर-परिवार के लिए होती है।
होली की अग्नि में धान्य को सेक कर ग्रहण करें
इसके साथ ही होली की अग्नि में धान्य को सेककर लाएं और इसका सेवन करें । कहीं-कहीं पर होली की अग्नि में बाटी या रोटी बनाने का भी प्रावधान है। मान्यता है कि होली की अग्नि में पकी वस्तुओं को खाने से काया निरोगी रहती है। लंबे समय से बीमार हैं और स्वास्थ्य में सुधार चाहते हैं तो होली की अग्नि में देसी घी के साथ दो लौंग, एक बताशा और एक पान का पत्ता डाल दें। अगले दिन इननकी राख को शरीर पर मलें और गरम पानी से स्नान करें। स्वास्थ्य लाभ होगा।
तांत्रोक्त प्रभाव से मिलेगी मुक्ति
तांत्रोक्त प्रभाव को कम करने के लिए होली की अग्नि में दो लौंग, एक बताशा और पान का पत्ता डालें। इनकी राख को एक चांदी के ताबीज में भरकर गले मे धारण करें। तांत्रोक्त प्रभाव से मुक्ति मिलेगी। यदि कुंडली के ग्रहदोष जीवन में दिक्कत दे रहे हैं तो होली में दो लौंग, एक बताशा और एक पान का पत्ता डाल दें। यदि शासन-प्रशासन की ओर से समस्या है तो 8 होली के उल्टे फेरे लगाकर उसमें आक की जड़ अग्नि में अर्पित करें। ।