हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद था परम विष्णु भक्त, जानें होली से जुड़ीं पौराणिक कहानी
फाल्गुन मास में फागुनी हवा बहने के साथ ही मौसम गर्म होने लगता है। शीत की विदाई के साथ पलाश फूलने लगता है और गेंहूं के खेत सुनहरे रंग से खिल उठते हैं। ऐसे में रंगों के त्यौहारHoli की आहट होती है और उत्साह के साथ भाईचारे के रंग चारों और बिखरने लगते हैं। ऐसे समय में रंगों के त्यौहार Holi का आगमन होता है। उमंग, उत्साह और भाईचारे के साथ इस पर्व की मस्ती चारों और छाई रहती है।
Holi का त्यौहार क्यों मनाया जाता है इसके पीछे एक पौराणिक कहानी जुड़ी हुई है। इसके अनुसार हिरण्यकश्यप ने भगवान विष्णु को हराने के लिए भगवान ब्रम्हा और महादेव की घोर तपस्या की और ब्रह्मा से वरदान प्राप्त किया कि उसको मानव मार सके न जानवर, ना दिन में मृत्यु हो न रात में, मा घर के अंदर मौत आए न बाहर, जल में मारा जा सके न धरती पर। ना ही अस्त्र, शस्त्र से मृत्यु हो।
हिरण्यकश्यप ने दिया स्वयं की पूजा का आदेश
वरदान पाकर वह शक्तिशाली हो गया और अपनी शक्ति का दुरुपयोग करने लगा। हिरण्यकश्यप ने इंद्र का राज्य छीन लिया और तीनों लोकों में उपद्रव मचाने लगा। उसने अपने राज्य में भगवान विष्णु की पूजा पर प्रतिबंध लगा दिया और आदेश दिया कि लोग मुझे भगवान मानकर मेरी पूजा करें, लेकिन हिरण्यकश्यप का पुत्र प्रह्लाद परम विष्णु भक्त था। उसने अपने पुत्र प्रह्लाद को विष्णु भक्ति बंद करने के लिए काफी समझाया, लेकिन प्रह्लाद की विष्णु भक्ति जारी रही। काफी प्रताड़ना देने के बाद भी जब प्रह्लाद की विष्णुभक्ति बंद नहीं हुई तो उसने अपनी बहन होलिका को बुलवाया। होलिका को अग्नि में न जलने का वरदान प्राप्त था। हिरण्यकश्यप के आदेश से होलिका प्रह्लाद को होली में लेकर बैठ गई। लेकिन प्रह्लाद की विष्णुभक्ति की वजह से होली तो अग्नि में जलकर खाक हो गई और प्रह्लाद सकुशल धधकती अग्नि से बाहर आ गया। यह घटना फाल्गुन माह की पूर्णिमा तिथि को हुई थी इसलिए इस दिन Holi का पर्व मनाया जाता है।