पारिस्थितिकी को बचाए रखने के लिए जलवायु परिवर्तन को नियंत्रित करने की जरूरत
जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों के दबाव के कारण वैश्विक रूप से उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में जैव विविधता और पारिस्थितिक तंत्र बिगड़ता जा रहा है। ब्रिटेन की लंकेस्टर यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने यह दावा किया है। उन्होंने इस अध्ययन के लिए दुनिया भर के 100 से अधिक स्थानों का अवलोकन किया, जहां उष्णकटिबंधीय जंगलों और प्रवाल भित्तियों (कोरल रीफ) को तूफान, बाढ़, हीटवेव (लू), सूखा और आग जैसी आपदाओं ने प्रभावित किया था।
रॉयल सोसायटी बी के जर्नल फिलोसोफिकल ट्रांजेक्शन में प्रकाशित अध्ययन में शोधकर्ताओं ने बताया है कि जलवायु को प्रभावित करने वाले कारक कैसे हमारे पारिस्थितिकी तंत्र को प्रभावित कर रहे हैं और जलवायु परिवर्तन के लिए मानवीय गतिविधियां कितनी जिम्मेदार शोधकर्ताओं ने कहा, ‘यदि हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर केवल कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन कम कर दें तो जलवायु परिवर्तन की प्रवृत्ति को बदला जा सकता है।
ब्राजील के एम्ब्रपा अमेजन ओरिएंटल के प्रमुख शोधकर्ता फिलिप फ्रेंका ने कहा, ‘वैश्विक जैव विविधता के लिए उष्णकटिबंधीय वन और प्रवाल भित्तियां बहुत महत्वपूर्ण हैं, इसलिए यह बेहद चिंताजनक है कि वे जलवायु परिवर्तन और मानव गतिविधियों दोनों से प्रभावित हैं।’ उन्होंने कहा कि उष्णकटिबंधीय जंगलों और प्रवाल भित्तियों के लिए कई स्थानीय खतरे, जैसे कि वनों की कटाई, अतिवृष्टि और प्रदूषण भी जिम्मेदार हैं। इनसे पारिस्थितिक तंत्र की विविधता और कार्यप्रणाली दोनों ही प्रभावित होती है। फ्रेंका ने कहा, ‘यदि इस प्रवृत्ति को बदला जाए तो हमारा पारिस्थितिकी तंत्र काफी हद तक जलवायु परिवर्तन से निपटने में सक्षम हो सकता है।
तूफान और लू का कारण : शोधकर्ताओं ने पाया कि जलवायु परिवर्तन अब अधिक तीव्र तूफान और समुद्री किनारों पर लू का कारण भी बन रहा है। लंकेस्टर यूनिवर्सिटी के समुद्र विज्ञानी कैसेंड्रा ई बैंकविट ने कहा, ‘प्रवाल भित्तियों के लिए इस तरह का मौसम उनके बाहरी आवरण को प्रभावित करता है और इससे उनका विस्तार क्षेत्र भी कम हो जाता है। इससे मछलियों की प्रजातियां भी प्रभावित होती हैं। बैंकविट ने कहा, हालांकि प्रवाल भित्तियों को विस्तार क्षेत्र पर कितना प्रभाव पड़ेगा वह इस बात पर निर्भर करता है कि जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कितने लंबे समय तक रहा।
प्रभावी कदम उठाने की है जरूरत : शोधकर्ताओं ने बताया कि उष्णकटिबंधीय वन्य प्रजातियों को तूफान की बढ़ती आवृत्ति से भी खतरा है। न्यूजीलैंड के कैंटरबरी यूनिवर्सिटी के ग्वाडालूपे पेर्टा ने कहा, ‘उष्णकटिबंधीय जंगलों में तूफान के बाद पारिस्थितिक तंत्र पूरी तरह विरूपित हो जाता है। जंगलों में पेड़-पौधों के टूटने, जानवरों, पक्षियों और कीड़ों पर इसका प्रभाव साफ तौर पर देखा जाता है। शोधकर्ताओं ने कहा कि यदि हमें अपने पारिस्थितिकी तंत्र और जैव-विविधता को स्वस्थ बनाए रखना है तो जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए प्रभावी कदम उठाने होंगे।