तुलसी की ही पूजा क्यों? जानें क्या है इसके पीछे की वजह

दुर्गेश पार्थसारथी

हर भारतीय हिंदू परिवार में तुलसी के पौधे को मां की मान्‍यता दी जाती है और इसी मान्‍यता के चलते हर घर के आंगन में विराजमान होती हैं ‘मां तुलसी’ अर्थात तुलसी का यह नन्‍हा सा पौधा। प्राय: हर भारतीय नारी प्रात: काल स्‍नान के बाद इस पौधे का स्‍मरण करना नहीं भूलती और इन्‍हें जल अपर्ति कर अपने लंबे सुहाग एवं वंश के सुख-समृद्धि की कामना करती है। स्‍कंद पुराण के अनुसार जो हाथ पूजार्थ तुलसी के पत्‍ते को चुनते हैं वे धन्‍य हैं-

‘तुलसी’ से विचिन्‍वि‍ि‍न्‍त ध्‍न्‍यास्‍ते करपल्‍लवा:।’

भगवान विष्‍णु को तुलसी बहुत ही प्रिय हैं। भगवान कहते हैं कि एक ओर रत्‍न, मणि तथा स्‍वर्ण निर्मित बहुत से पुल चढ़ाये जाएं और दूसरी ओर तुलसी दल चढ़ाया जाए तो वे तुलसी दल को ही पसंद करेंगे। स्‍कंदपुराण के अनुसार भगवान विष्‍णु कहते हैं कि यदि सच पूछा जाए तो वे तुलसीदल की सोलहवी कला की भी समता नहीं कर सकते-

‘मणिकांचनपुष्‍पाणि तथा मुक्‍तामयानि च।
तुलसी दल मात्रस्‍य कलां नाई न्ति षोडशीम्।’

स्‍कंदपुराण के अनुसार भगवान कहते हैं कि मुझे कौस्‍तुभ भी उतना प्रिय नहीं है, जितना कि तुलसी पत्र व मंजरी। श्‍याम तुलसी तो उन्‍हें प्रिय है ही गोरी तुलसी तो और भी अधिक प्रिय है- इसे पुराण के अनुसार भगवान ने श्री मुख से कहा है कि यदि तुलसी दल न हो कनरे, बेला, चंपा, कमल और मण्शि आदि से निर्मित फूल भी मुझे नहीं सुहाते।

‘करवीरप्रसूनं वा मल्लिका वाथ चम्‍पकम्।
उत्‍पलं शतपत्रं वां पुश्‍पें चान्‍यतमं तु वा।।
सुवर्णैन वृत्‍त पुष्‍पं राजतं रत्‍नमेव वा।
मम पादाब्‍जपूजायामनर्ह भवति ध्रुवम्।।’

धर्मशास्‍त्रों के अनुसार बिना तुलसी के भगवान की पूजा पूर्ण नहीं मानी जाती। – तैनेव पूजां कुर्वीत न पूजा तुलसीं बिना।।’ ब्रह्मपुराण के अनुसार तो शालिग्राम की पूजा के लिए निषिद्ध समय में भी तुलसी तोड़ी जा सकती है। शास्‍त्र बताते हैं कि तुलसी से पूजित शिवलिंग या विष्‍णु की प्रतिमा के दर्शन मात्र से ही ब्रह्महत्‍या के पा से मुक्ति मिल जाती है। पद्यपुराण में एक स्‍थान पर कहा गया है कि एक ओर मालती आदि पुष्‍पों की ताजी मालाएं हों और दूसरी ओर बासी तुलसी हो तो भगवान बासी तुलसी को ही अपनाएंगे।

पद्यमपुराण, आचार रत्‍न में लिखा है कि ‘ न तुलस्‍या गणधिवम्’ अर्थात तुलसी से गणेश जी की पूजा कभी न की जाए। भगवान गणेश के अतिरिक्‍त सभी देव पूजनों में तुलसी पव्‍ का प्रयोग किया जा सकता है। रामचरितमानस के अनुसार राम भक्‍त हुनामन जी जब सीता जी की खोज करने लंगा गए तो उन्‍हें एक घर के आंगन में तुलसी का पौधा दिखाई दिया-

‘ रामायुध अंकित गृह शोभा बरनि ना जाए।
नव तुलसि का वृद तहं देखि हरष कपिराय।।’

तमाम भारतीय हिंदू धर्म शास्‍त्रों के अध्‍ययन से यह बात स्‍पष्‍ट होती है कि अति प्राचीन समय से ही तुलसी का पूजन आम भारतीय हिंदू समाज में होता चला आ रहा है। जो हमारी पुरातन वैदिक संस्‍कृति का द्योतक है। विष्‍णु पूजन में देव प्रसाद व चरणामृत में तुलसी पत्र का होना आवश्‍यक माना गया है। धर्म व सात्विक विचार धारा में तुलसी पत्र डाल दिया जाए तो भंडार कभी खाली नहीं पड़ता। यहां तक कि मरते हुए प्राणि के अंतिम समय में गंगाजल व तुलसीपत्र दिया जाता है ताकि उसे मोक्ष की प्राप्ति हो सके।
इन सभी धार्मिक मान्‍यताओं के पीछे एक वैज्ञानिक रहस्‍य भी छिपा है।

आज के युग में हो रहे निरंतर वैज्ञानिक प्रयोगों से यह बात स्‍पष्‍ट हो गई है कि इस पौधे का हर भाग यहां तक तने से लेकर पत्तियां व मंजरी भी औषधीय गुणों से परिपूर्ण है। आयुर्वेद के ग्रंथों में तुलसी की बड़ी भारी महिमा वर्णित है। इसके पत्‍ते साफ पानी में उबाल कर पीने से सामान्‍य ज्‍वर, जुकाम, खांसी एवं मलेरिया में तत्‍काल रहात मिलती है। तुलसी के पत्‍तों में संक्रामक रोगों को रोकने की अद्भुत शक्ति है। अपनी अनेकानेक औषधीय गुणों के कारण ही भारत के समस्‍त भागों में यह पौधा सभी जगह विराजमान है।

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