सोनभद्र नरसंहार-सीएए के विरोध में हिंसा जैसी घटनाओं पर लगेगी लगाम
उत्तर प्रदेश में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू होने से पुलिस को मिले नए अधिकार तस्वीर को बदलने में कारगर साबित होंगे। पुलिस के सामने सोनभद्र के उभ्भा में नरसंहार कांड से लेकर नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) के विरोध में हुई हिंसा जैसी घटनाओं की चुनौतियां हैं। इनसे निपटने में यह बदलाव असरकारक होगा। मादक पदार्थों की तस्करी, मानव तस्करी, साइबर फ्राड, फर्जी काल सेंटर आदि से जुड़े अपराधों पर भी प्रभावी अंकुश लग सकेगा। हालांकि, कानून-व्यवस्था के मुद्दे पर अब पुलिस की जवाबदेही बढ़ जाएगी।
सोनभद्र के उभ्भा में दो पक्षों के बीच जमीन को लेकर चल रहे विवाद में पाबंद किए जाने की कार्रवाई न होने का नतीजा ही था कि खूनी संघर्ष ने पूरे प्रदेश में सनसनी फैला दी थी। पूर्व डीजीपी बृजलाल कहते हैं कि अब तक ऐसे मामलों में निरोधात्मक कार्रवाई के लिए पुलिस को एसडीएम के चक्कर काटने पड़ते थे। एसडीएम की व्यस्तता के चलते कई बार समय से वह कार्रवाई नहीं हो पाती थी, जिससे दो पक्षों के बीच टकराव रोका जा सके। ऐसे में जवाबदेही भी पुलिस की होती है।
दूसरे, अब लोगों को किसी आयोजन की अनुमति के लिए पुलिस थाने से लेकर मजिस्ट्रेट कार्यालय तक के चक्कर काटने नहीं पड़ेंगे। उसे सीधे पुलिस कमिश्नर के कार्यालय से आयोजन की अनुमति मिल सकेगी। आर्म्स एक्ट के मामलों में भी पुलिस कार्रवाई तेज होगी और हर्ष फायरिंग व लाइसेंसी शस्त्र के दुरुपयोग के मामलों में पुलिस सीधे शस्त्र निरस्त करने की कार्रवाई कर सकेगी। अभी उसे इसकी रिपोर्ट डीएम को भेजकर कार्रवाई का इन्तजार करना पड़ता है।
पूर्व डीजीपी विक्रम सिंह इसे पारदर्शी व सिंगल विंडो सिस्टम होने का तर्क देते हैं। कहते हैं कि कानून-व्यवस्था से हर नागरिक सीधे प्रभावित होता है। उसकी जवाबदेही भी पुलिस की होती है। अब पुलिस अराजक तत्वों व अपराधियों के खिलाफ मुखर होकर जिलाबदर करने से लेकर अन्य प्रभावी कार्रवाई तत्काल कर सकेंगी।
क्या है पुलिस कमिश्नर प्रणाली
इस प्रणाली के तहत शहर में कानून-व्यवस्था से जुड़ी किसी भी परिस्थिति में बल प्रयोग करने से लेकर अन्य विधिक कार्रवाई का निर्णय लेने का अधिकारी पुलिस आयुक्त के पास होगा। जिलों में एसएसपी/एसपी की तैनाती के तहत वे डीएम के पर्यवेक्षण में काम करते हैं। पुलिस कमिश्नर प्रणाली में कानून-व्यवस्था व शांति-व्यवस्था को बनाए रखने के लिए सभी प्रशासनिक निर्णय लेने का अधिकार पुलिस के पास होता है।
वर्ष 1861 के पहले से चल रही है पुलिस कमिश्नर प्रणाली
मुंबई व कोलकता में पुलिस कमिश्नर प्रणाली वर्ष 1861 के पहले से चली आ रही है। दरअसल, अंग्रेजों ने लंदन के मॉडल पर यह व्यवस्था लागू की थी। यही वजह है कि पहले मुंबई व मद्रास पुलिस नीली वर्दी पहनती थी। दिल्ली में वर्ष 1978 में पुलिस कमिश्नर प्रणाली लागू की गई थी।