देश के 18 शक्तिपीठों में से एक चामुंडेश्वरी मंदिर है, सर्दियों में दर्शन और घूमने के लिए बेहतरीन
सर्दियों के मौसम में अगर आप किसी तीर्थ स्थल के दर्शन के लिए जाना चाहते हैं तो चामुंडेश्वरी देवी का मंदिर एक अच्छा ऑप्शन हो सकता है। यह कर्नाटक के मैसूर शहर से 13 किमी. की दूरी पर चामुंडी नामक पहाड़ी पर स्थित है। यह मंदिर मां दुर्गा के चामुंडेश्वरी स्वरूप को समर्पित है।
ऐसी मान्यता है कि इसी स्थान पर मां दुर्गा ने महिषासुर का वध किया था। पहाड़ी पर महिषासुर की ऊंची मूर्ति और मां का मंदिर है। यह मंदिर देश के प्रमुख 18 शक्तिपीठों में से एक है। ऐसी मान्यता है कि जब शिव जी सती के शव को कंधे पर लेकर तांडव नृत्य कर रहे थे और उनके क्रोध को शांत करने के लिए विष्णु भगवान ने सुदर्शन चक्र चलाया था तो उससे कट कर सती के बाल इसी स्थल पर गिरे थे। इसी वजह से इस तीर्थस्थल को शक्तिपीठ की मान्यता दी गई है। पौराणिक काल में यह क्षेत्र क्रौंचपुरी कहलाता था, इसी कारण दक्षिण भारत में इस मंदिर को क्रौंचापीठम के नाम से भी जाना जाता है। प्रचलित मान्यता के अनुसार इस शक्तिपीठ की रक्षा के लिए कालभैरव यहां सदैव विराजमान रहते हैं।
मंदिर की संरचना
द्राविड़ वास्तुशिल्प से निर्मित यह मंदिर बहुत सुंदर एवं कलात्मक है। मंदिर के अंदर गर्भगृह में देवी की प्रतिमा सोने से बनी है। सात मंजिला इमारत के रूप में निर्मित इस मंदिर का भव्य स्वरूप भक्तों को मुग्ध कर देता है। मुख्य मंदिर के पीछे महाबलेश्वर को समर्पित एक छोटा-सा शिवमंदिर है, जो 1,000 वर्षों से भी अधिक पुराना है। पहाडिय़ों की चोटी से मैसूर की प्राकृतिक सुंदरता देखते ही बनती है। मैसूर के दशहरे का त्योहार विश्वप्रसिद्ध है। विदेशी पर्यटकों के लिए यह एक अनूठा और अद्भुत दृश्य होता है, जिसे वे अपने कैमरों में कैद कर लेते हैं। यहां से मां चामुंडेश्वरी की पालकी भी निकाली जाती है। दक्षिण भारत के अन्य मंदिरों की तरह यहां भी विशेष दर्शन के लिए कूपन लेना आवश्यक होता है।
मंदिर के खुलने का समय
प्रात: 7.30 से दोपहर 2.00 बजे, अपराह्न 3.30 से शाम 6.00 बजे, शाम 7.30 से रात्रि 9.00 तक है। भक्त इसी अवधि में दर्शन कर सकते हैं। यहां आने वाले अधिकतर पर्यटक मैसूर महल, चिडिय़ाघर, रंगनाथिट्टु पक्षी अभयारण्य, बुद्धिस्ट गोल्डन मंदिर और सैंड स्कल्पचर संग्रहालय आदि स्थलों पर भी घूमने ज़रूर जाते हैं।
कैसे जाएं और कहां ठहरें
चामुंडेश्वरी मंदिर पहुंचने के लिए बेंगलुरु रेलवे स्टेशन से मैसूर के बीच चलने वाली किसी भी ट्रेन को लिया जा सकता है। शताब्दी एक्सप्रेस मैसूर को चेन्नई से जोड़ती है। कर्नाटक सड़क परिवहन निगम की बसें मैसूर से विभिन्न राज्यों के लिए चलती है। देश के सभी प्रमुख शहरों से बेंगलुरु तक हवाई मार्ग द्वारा पहुंचा जा सकता है। वहां रेल या सड़क मार्ग द्वारा मैसूर जा सकते हैं। वहां लोगों के ठहरने के लिए होटल्स, लॉज धर्मशाला और आरामदायक गेस्ट हाउस उपलब्ध हैं।
यहां आने वाले पर्यटक अपने साथ सिल्क की साडिय़ां और चंदन की लकड़ी से बनी आकर्षक सजावटी वस्तुएं साथ लेकर जाते हैं। दिसंबर में जहां उत्तर भारत में कड़ाके की ठंड पड़ती है, वहीं यहां का मौसम सुहावना रहता है। तो देर किस बात की, चलें मैसूर की सैर पर।