माँ की ममता क्या होती है, पढ़ ले भावुक कर देने वाली PM मोदी की लिखी ये 5 कविता
भारतीय राजनीति में आज के समय में सबसे लोकप्रिय नेता माने जा रहे प्रधानमंत्री मोदी का जन्मदिन है. प्रधानमंत्री मोदी आज अपना 68वां जन्मदिन बना रहे हैं. अपना संसदीय क्षेत्र वाराणसी में आज पीएम मोदी बच्चों के साथ अपना जन्मदिन मनाएंगे. प्रधानमंत्री मोदी एक कवि भी हैं ये बात काम ही लोग जानते हैं. पीएम मोदी ने अपने इस हुनर के बारे ट्वीट करके खुद इस बात की जानकारी दी थी.
साल 2015 में “साक्षी भाव” नाम से उनका हिन्दी कविता संग्रह आया था. इस कविता संग्रह में पहली कविता हैं मां. मां पर लिखी इस कविता से ही पीएम मोदी के कवि नरेंद्र बनने का सफर शुरू हुआ. पीएम मोदी ने इन कविताओं के बारे में बताया था कि ये उन्होने आत्मसुख के लिए लिखी थीं. इस संग्रह में कुल 16 कविताएं हैं. सभी कविताएँ “जगज्जननी माँ के श्रीचरणों में” समर्पित हैं.
इस संग्रह में पीएम मोदी की 1986 से लेकर 1989 के बीच लिखी गई कविताएं हैं. नीचे पढ़ें नरेंद्र मोदी की 5 अलग-अलग कविताओं के अंश
- परंतु आज मानो मति शून्य हो गई है
कुछ लुट जाने का, कुछ कुचले जाने का
कुछ मर जाने का, कुछ न जाने क्या-क्या
बनते रहने के
संकेतों के बीच मैं घिरा पड़ा हूँ.
क्या मेरे स्व की अतिशय भाव-सृष्टि ही
ऐसा नहीं होने देती?
न…माँ…न…ऐसा नहीं लगता.
(3-12-86)
- एक ओर तो मैं भावना और
उसकी अभिव्यक्ति के व्यसन में फँसा हूँ
जबकि मेरे चारों ओर उत्साह और
उमंग के नाद गूँज रहे हैं
जगह-जगह से स्वयंसेवक शिविर में आ रहे हैं.
माँ…व्यवस्था के लिए पूरी शक्ति से प्रयास किया है.
उन सबके स्वागत के लिए छोटे-बड़े सैकड़ों
स्वयंसेवकों ने अपने पसीने की चादर बिछाई है
कितनी अधिक उमंग थी-
काम करनेवाले सबके व्यवहार में!
हाँ, आनेवाले स्वयंसेवक भी उतने ही
उमंग-उत्साह से भरे आए हैं.
मातृभूमि के कल्याण के लिए
स्वयं को अधिक तेजस्वी बनाने के लिए
आत्मविश्वास में वृद्धि करने के लिए
हृदय में प्रेरणा का पीयूष भरने के लिए
वे थिरक रहे हैं
उनकी आँखों में से समाज-शक्ति, राष्ट्र-भक्ति,
संघ-भक्ति की भावना की धार झर रही है.
मेरे अंतर्मन को यह सब कितनी सहजता से स्पर्ष कर जाता है.
(06-12-1986)
3.
माँ, तेरी कैसी अजब कृपा है
देख न, चार दिन हो गए
भोजन और नींद दोनों ही उपलब्ध नहीं
किसी परिस्थिति के कारण
फिर भी थकावट जैसा कुछ लगता नहीं है.
अरे, कल की रात तो
निपट नींद के बिना ही बिताई
फिर भी प्रसन्नता का अनुभव करता हूँ
सच में, यह सब तेरी कृपा के बिना संभव है क्या?
- कविता सृष्टि की वृष्टि
सारे गुजरात के समान अकाल में डूबी है.
हाँ, कभी-कभी उत्पादन हो जाता है,
परंतु सर्जन तो है ही नहीं.
उत्पादन का तो ऐसा है कि उसमें जरूरी कच्चा माल बरो
और ठूँस-ठूँसकर भरो…
फिर यंत्र का बटन दबाओ
पेन-पेंसिल जैसे यंत्र को जोड़ो.
बस फिर क्या?
अक्षरों के समूह कभी शब्द बन
कभी शब्द समूह के रूप में
क्षमता के अनुसार लंबाई के साथ उत्पादित होते रहते हैं.
भरा हुआ कच्चा माल समाप्त हो जाए तो
उत्पादन बंद.
उत्पादन तो ऐसा है कि उत्पादित होता रहे.
हाँ, लोग उसे सृजन कहकर
स्वीकार कर लेते हैं, यह बात अलग है
कारण-
वैसे ही पाउडर के दूध से
बालकों को पालने की आदत से
हमें सृजन की समझ है क्या?
(22-12-86)
- कितनी असह्य वेदना!
शायद अंतर्मन को हिला देनेवाली अवस्था!
लोग कहते हैं- प्रत्येक सृजन के मूल में
सर्जक के वेदना अस्तित्व रखती है.
मेरी इतनी-इतनी वेदना के बाद भी
सृजन का नामोनिशान तक नहीं?
मुझे सदा ही लगता रहता है
सृजन का कारण वेदना की बजाय करुणा ही होती होगी.
वेदना तो क्रिया होने के बाद की प्रतिक्रिया का परिणाम है.
(28-12-86)