एक पवित्र सामाजिक, वैज्ञानिक और नैतिक अभ्यास है रमजान का महीना

मुस्लिम धर्म में रमजान के महीने को बेहद पवित्र माना जाता है। इस माह की शुरुआत चांद देखने के बाद से होती है। इस बार रमजान (Ramadan 2025) का महीना 02 मार्च से शुरू हुआ और इस माह के बाद ईद उल फितर मनाई जाती है। हर साल शव्वाल के पहले दिन ईद मनाई जाती है। मुस्लिम धर्म के लिए  सबसे बड़े त्योहारों में से एक है ईद उल फितर ।

रमजान के पूरे महीने में लोग रोजा रखते हैं। इस दौरान खाने पीने की मनाही होती है। सूर्यास्त के बाद रोजा खोला जाता है, जिसे इफ्तारी कहते हैं। इस महीने में गरीब लोगों की मदद करनी चाहिए और रोजा रखने वाले लोगों को नियमों का पालन करना चाहिए। इस महीने से बहुत कुछ सीखने को मिलता है।  

रमजान का मूल स्त्रोत है रमज

अब्दुल वदूद साजिद (संपादक, इंकिलाब, दिल्ली) बताते हैं कि रमजान का मूल स्त्रोत रमज है। रमज का अर्थ है रुक जाना। रोजे में इंसान जिस प्रकार खाने पीने से रुक जाता है उसी प्रकार बुराइयों से भी रुकना होता है। रोजा रख कर जिन कठिनाइयों से गुजरना पड़ता है वास्तव में इंसान को यही आभास कराना होता है कि समाज के जिस वंचित पीने जैसी सुविधाएं नहीं हैं उन्हें किस दर्द से गुजरना पड़ता है।

रमजान में जरूर करें दान

जब उनकी पीड़ा का व्यवहारिक तजुर्बा होगा तभी उन से हमदर्दी पैदा होगी। इसी लिए इस्लाम धर्म ने इस बात पर जोर दिया है कि जो अपने लिए पसंद है वही दूसरों के लिए भी करो। इसी प्रकार अपने पड़ोसी का यहां तक ख्याल रखने को कहा गया है कि अगर वह गरीब है तो अपने खाने पीने की चीजों में से उसका हिस्सा भी निकालो।

इस्लाम के दूत हजरत मुहम्मद (स) ने यहां तक कहा कि खुदा की कसम वह मुसलमान नहीं है जिसके हाथ की तकलीफ से उसका पड़ोसी सुरक्षित नहीं है। पड़ोसी कोई भी हो सकता है, हिंदू भी, मुस्लमान भी, सिख और ईसाई भी।

रोजा एक नैतिक अभ्यास है

रोजा एक पवित्र सामाजिक, वैज्ञानिक और नैतिक अभ्यास है। इस अभ्यास के जरिये इंसान को एक साथ कई तत्व समझाना और बहुआयामी अनुभवों से गुजारना असल मकसद है।

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