दलित स्कॉलर को HC से झटका, देश विरोधी हरकतों के लिए TISS ने किया था निलंबित

बॉम्बे हाईकोर्ट ने बुधवार को टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेस (TISS) के एक दलित पीएचडी छात्र रामदास केएस द्वारा दाखिल की गई याचिका खारिज कर दी। रामदास ने अपने दो साल के निलंबन को चुनौती दी थी। TISS ने लगातार अनुशासनहीनता और देशविरोधी गतिविधियों के आरोपों में उन्हें निलंबित कर दिया था। जस्टिस एएस चंदुर्कर और जस्टिस एमएम साठे की डिवीजन बेंच ने रामदास द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा, “याचिका को कोई आदेश जारी किए बिना खारिज किया जाता है।” फैसले की विस्तृत प्रति अभी इंतजार की जा रही है।
रामदास छात्र संघ संगठन ‘स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया’ (SFI) के सदस्य हैं। उन्होंने मई 2024 में अदालत का रुख किया था। उन्होंने अपने निलंबन को रद्द करने की मांग की थी। उनका कहना था कि उनका निलंबन बिना उचित स्पष्टीकरण की सुनवाई के लगाया गया था। TISS ने रामदास को उनकी ‘सशक्त समिति’ की जांच के आधार पर निलंबित किया था। विश्वविद्यालय का निलंबन आदेश कहता है कि रामदास की गतिविधियां देश के हित में नहीं थीं।
TISS ने जनवरी 2024 में दिल्ली में ‘प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स फोरम’ (PSF)-TISS के बैनर तले आयोजित एक विरोध प्रदर्शन में उनकी भागीदारी को संदिग्ध माना और इसे संस्थान के लिए उपयुक्त नहीं माना। विश्वविद्यालय का कहना था कि छात्रों को ऐसी गतिविधियों में भाग लेने की अनुमति नहीं दी जा सकती जो देश के खिलाफ हो।
रामदास ने अपनी याचिका में यह भी आरोप लगाया कि उनका निलंबन उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है, जिसमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और संघ बनाने का अधिकार शामिल है। उन्होंने विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (UGC) के दिशानिर्देशों का भी उल्लेख किया, जो विश्वविद्यालयों से आलोचनात्मक विचारों और खुले बहस के लिए स्थान प्रदान करने की अपील करते हैं। रामदास का कहना था कि TISS ने उन्हें साजिश करके अपमानित किया और उनके राजनीतिक दृष्टिकोण और गतिविधियों के कारण उन्हें दंडित किया।
रामदास ने न केवल अपने निलंबन को चुनौती दी। उन्होंने अदालत से यह भी आदेश देने की मांग की थी कि उन्हें TISS परिसर में वापस लौटने, अपनी अकादमिक गतिविधियों को जारी रखने और उनका निर्धारित छात्रवृत्ति प्राप्त करने की अनुमति दी जाए।
रामदास की ओर से वकील लारा जेसानी और ऋषिका अग्रवाल ने दलील पेश की, जबकि TISS की ओर से वकील राजीव पांडे और आशीष कनोहिया ने अदालत में उपस्थित होकर संस्थान का बचाव किया। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की ओर से वकील रुई रोड्रिग्स और भारत सरकार की ओर से वकील शिल्पा कापिल ने भी अदालत में अपना पक्ष रखा।